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(कालसी… गुरदत्त चौहान)
विश्व प्रसिद्ध महान सम्राट अशोक की एक नायाब निशानी पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में स्थित है। जो सदियों बाद भी, अपने आप में पूरा इतिहास से संजोय हुए हैं। ये उत्तर भारत के एकमात्र अशोक शिलालेख माना जाता है। जो, देहरादून जिले के कालसी में स्थित है।
कालसी में स्थित यह अभिलेख इस बात का प्रमाण देते हैं कि विश्व के महानतम सम्राट अशोक द्वारा प्रतिपादित यह उपदेश केवल उपदेश नहीं रहे। इन्हें व्यवहार में भी उपयोग किया जाता रहा है। जिस कारण सम्राट अशोक की गणना दुनिया के महान शासकों में की जाती है।
सम्राट अशोक के प्रशासन के बारे में जानकारी
इस शिला का अपना ही महत्व है। इस शिला पर लिखे लेखों की भाषा प्राकृत और लिपी ब्राह्मी है। अनूठी प्रकृति के बीच स्थित यह शिला लेख सम्राट अशोक के आंतरिक प्रशासन के विषय में बताती है। यह शिला सम्राट के दृष्टिकोण, प्रजा के साथ नैतिक, आध्यात्मिक एंव पिता जैसे संबंधों, अंहिसा के लिए उनकी प्रतिबद्घता और युद्व में सम्राट के त्याग के बारे में बताती है। इन कार्यों के लिए अशोक ने निषेधात्मक और प्रयोगात्मक नीतियां बनाई थी, यह भी इसी लेख से पता चलता है। उत्तर भारत में केवल कालसी में ही विश्व के महान सम्राट अशोक का शिलालेख है।
आज पांवटा प्रेस क्लब् के वरिष्ठ पत्रकारों ज्ञान प्रकाश, सुरेश तोमर, संजय कंवर व अशोक बहुता के साथ इस ऐतिहासिक जगह पर जाने का अवसर मिला। अपने आप मे अद्भुत इतिहास का साक्षी स्थल है। कुछ पल रविवार को यहां पर बिताए। एक अनूठी सी अनुभूति मिली।
उतराखंड की रविवार को यात्रा के दौरान बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक बाते, इतिहास की जानकारी रखने वाले अपने पांवटा के वरिष्ठ पत्रकार साथियों सुरेश तोमर व ज्ञान प्रकाश शर्मा से जानने को मिली। जिसमे, अशोक की निषेधात्मक नीतियों में सांसारिक मनोविनोद, पशुबलि, अनावश्यक कार्यों में लिप्त होना, खुद का बखान करना तथा प्रयोगात्मक नीतियों में आत्म संयम, मन की शुद्घता, कृतघ्नता, माता-पिता की सेवा, ब्राहमणों और सन्यासियों की सेवा, दान तथा धार्मिक विषयों पर आपसी सामंजस्य का उद्बोधन शामिल है।
*शिलालेख में धर्म घोष द्वारा विजय का भी उल्लेख*
– कालसी के अशोक शिलालेख पर इन नीतियों को लागू करने के लिए सम्राट ने पशुओं को अनावश्यक मारने पर प्रतिबंध, जानवरों और इंसानों के लिए स्वास्थ्य सुविधा, युद्व घोष के स्थान पर धर्म घोष द्वारा विजय का उल्लेख किया है।
सम्राट अशोक ने न केवल अपने साम्राज्य और पड़ोसी देश के अतिरिक्त दक्षिण और पश्चिमी देशों के समकालीन राजाओं जैसे सीरिया, इजिप्ट, मेसिडोनिया, सीरीन व इपिरस के साम्राज्य में भी इन उपदेशों का प्रचार किया।
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