Breaking News :

मौसम विभाग का पूर्वानुमान,18 से करवट लेगा अंबर

हमारी सरकार मजबूत, खुद संशय में कांग्रेस : बिंदल

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद 7.85 करोड़ रुपये की जब्ती

16 दिन बाद उत्तराखंड के त्यूणी के पास मिली लापता जागर सिंह की Deadbody

कांग्रेस को हार का डर, नहीं कर रहे निर्दलियों इस्तीफे मंजूर : हंस राज

राज्यपाल ने डॉ. किरण चड्ढा द्वारा लिखित ‘डलहौजी थू्र माई आइज’ पुस्तक का विमोचन किया

सिरमौर जिला में स्वीप गतिविधियां पकड़ने लगी हैं जोर

प्रदेश में निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण निवार्चन के लिए तैयारियां पूर्ण: प्रबोध सक्सेना

डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं गवर्नेंस ने किया ओएनडीसी पर क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन

इंदू वर्मा ने दल बल के साथ ज्वाइन की भाजपा, बिंदल ने पहनाया पटका

November 23, 2024

गवेधुक के आटे से बनीं रोटियां खाकर अब होगा मोटापा दूर,गवेधुक का फल बुखार, जोड़ों के दर्द में भी लाभदायक

News portals-सबकी खबर (मंडी)

भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान जोगिंद्रनगर के द्रव्य गुण एवं औषधीय पौध उत्कृष्टता केंद्र ने प्राचीन औषधीय पौधे गवेधुक पर शोध करने के बाद उसे खाने वाले आटे में तबदील किया है गवेधुक के आटे से बनीं रोटियां खाकर अब मोटापा दूर भगाया जा सकेगा। इस आटे की रोटियों के सेवन के बाद शरीर में चर्बी कम करने को मंहगी दवाओं के साथ-साथ जटिल चिकित्सीय उपचार की जरूरत नहीं होगी। । पिछले तीन वर्षों में विशेषज्ञ इस शोध में लगे थे, जिसमें अब कामयाबी मिली है।

इस शोध के कारण अब न केवल गवेधुक की खेती को किसान बड़े स्तर पर कर सकेगा, बल्कि किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त साधन भी साबित हो सकता है। वास्तव में गवेधुक पौधे से चावल के आकार का दाना प्राप्त होता है। गवेधुक की खेती 1500 मीटर की ऊंचाई पर मध्य हिमालयी क्षेत्र में आसानी से की जा सकती है।दावा किया जा रहा है कि आटे की रोटी खाकर न केवल मोटापे की समस्या से निजात मिलेगी, बल्कि शरीर में वसा की मात्रा भी कम की जा सकेगी। गवेधुक प्रकृति से कड़वा, तीखा, मधुर, शीतल, रूखा, लघु, कफपित्त को कम करने वाला, वातकारक में सहायक होता है।

गवेधुक का फल बुखार, जोड़ों के दर्द में भी लाभदायक होता है। राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण चंदन ने इसकी पुष्टि की है।द्रव्य गुण एवं औषधीय पौध उत्कृष्टता केंद्र के प्रधान अन्वेषक डॉ. पंकज पालसरा ने बताया कि पांच हजार वर्ष पुराने आयुर्वेद की चरक संहिता में इस पौधे का उल्लेख है। जहां से इसका विचार मिला है। संस्थान में इस पौधे पर पिछले तीन वर्षों से लगातार कार्य करते हुए संस्थान के अन्वेषकों ने प्राकृतिक तौर पर इसकी फसल तैयार कर बड़ी कामयाबी हासिल की है।

 

Read Previous

हिमाचल पथ परिवहन निगम ने शुक्रवार से 90 और अंतरराज्यीय रूटों को किया बहाल

Read Next

महामाया बालासुंदरी मंदिर में नवरात्र मेलों का आयोजन कल से शुरू,नारियल चढ़ाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध

error: Content is protected !!