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हिमाचल प्रदेश हाल ही में प्रदेश में सीमेंट के दाम पांच से 10 रुपए तक बढ़ाए गए हैं। इन दामों के बढ़ने पर सीमेंट कंपनियों ने सरकार को तर्क दिया है कि डीजल व बिजली के दाम बढ़े हैं, जिसका असर हुआ, मगर सरकार का तर्क है कि डीजल के दाम आज से नहीं बढ़े वे काफी पहले से बढ़ रहे हैं और इतने ज्यादा भी नहीं बढ़े कि सीमेंट के दाम इतने ज्यादा बढ़ा दिए जाएं। पड़ोसी राज्यों में भी सीमेंट के दाम बढ़े हैं, परंतु वहां पर भी हिमाचल से कम हैं और यही कारण है कि यहां प्रदेश सरकार पर निशाना साधा जा रहा है।
दूसरी तरफ सीमेंट के दाम इसेंशियल कमोडिटी में नहीं है। लिहाजा इस पर सरकार का नियंत्रण भी नहीं है। ऐसे में प्रदेश सरकार इस पर कोई कानून लाने पर भी विचार कर रही है में सीमेंट के दाम लगातार बढ़ने के बाद अब राज्य सरकार गंभीर हो गई है। हालांकि सरकार का यह भी मानना है कि इन कंपनियों से कहीं न कहीं हिमाचल को फायदा भी मिल रहा है, परंतु आम जनता पर सीमेंट के दाम बढ़ाकर ये बोझ भी डाल रही हैं, जिस पर लगाम लगाई जानी जरूरी है। सूत्रों के अनुसार इसे लेकर अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं
और उनको कहा गया है कि वे सीमेंट के दामों पर नियंत्रण के लिए कोई रास्ता निकालें। केंद्र सरकार से भी इस संबंध में मामले को उठाया जाएगा, जिसकी भी तैयारी है। हिमाचल सरकार केंद्र को लिखेगी कि हिमाचल में बनने वाला सीमेंट यहां पर महंगा मिलता है, जिसके मूल्यों पर नियंत्रण के लिए कोई समाधान निकाला जाए। यदि इस मामले में विधानसभा से कोई कानून बनाने की जरूरत पड़ती है, तो आने वाले दिनों में वो कानून भी लाया जा सकता है, जिसके लिए भी राज्य सरकार पूरी तरह से तैयार है।
लेकिन इससे पहले केंद्र सरकार से भी यह मामला उठाया जाएगा। सीमेंट के दाम पर नियंत्रण केवल रेट कांट्रैक्ट के माध्यम से किया जा सकता है, जो कि सरकारी खरीद के लिए होता है। इसमें खुद सीमेंट कंपनियां टेंडर में भाग लेती हैं और कम से कम दाम निर्धारित करती हैं, मगर खुले बाजार में सीमेंट के दाम पर नियंत्रण नहीं है। अब देखना यह है कि सीमेंट कंपनियों की हेकड़ी को सरकार कैसे खत्म करेगी, क्योंकि पूर्व सरकार भी बोलती रही, मगर कुछ नहीं हो सका।
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