बुड़ेछू नृत्य, बैल पूजन व सास-दामाद दूज है त्यौहार का अहम हिस्सा
बड़ी दिवाली पर परोसे जाते हैं बिलोई, मूड़ा व अस्कली आदि व्यंजन
News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)
सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं त्यौहार अलग अंदाज में मनाए जाते हैं, मगर यहां सप्ताह भर चलने वाली दिवाली तथा एक माह बाद आने वाली बूढ़ी दिवाली हमेशा चर्चा में रही है। क्षेत्र में दीपावली से एक दिन पूर्व चौदश से उक्त त्यौहार शुरू होता है तथा इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज व तीज आदि नाम से सप्ताह भर चलता है। इस दौरान क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बुड़ेछू लोक नृत्य होता है
तथा अस्कली, धोरोटी, पटांडे, सीड़ो व तेलपकी आदि पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं। दूज, तीच व चौथ आदि पर ग्रेटर सिरमौर के कईं गांव में सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें से कुछ जगहों पर रामायण व महाभारत का मंचन किया जाता है। इस बार कोरोना काल के चलते सांस्कृतिक संध्याएं फीकी रहने की आशंका है, हालांकि ग्रामीण परम्पराओं का निर्वाहन जरुर करते हैं। गिरीपार के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में दिवाली को आज भी इसी तरह पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है। शुक्रवार को चौदश अथवा छोटी दीवाली से दीपावली का आगाज हो चुका है। शुक्रवार को क्षेत्र में अस्कली, बिलोई, तेलपकी व पटांडे आदि व्यंजन बनाए गए तथा शाम को पारम्परिक बुड़ेछू नृत्य हुआ।
क्षेत्र में कुछ दशक पहले तक बिना पटाखे चलाए प्रर्यावरण मित्र ढंग से यह उत्सव मनाया जाता था, हालांकि अब देश के अन्य हिस्सों की देखा-देखी में आतिशबाजी दीपावली हिस्सा बन गई है। विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले पारंपरिक बुड़ेछू कलाकारों द्वारा इस दौरान होकू, सिंघा वजीर, चाय गीत, नतीराम व जगदेव आदि वीर गाथाओं गायन किया जाता है। उक्त कलाकारों द्वारा फास्ट बीट के सिरमौरी गीतों पर बूढ़ा नृत्य भी किया जाता है। सदियों से क्षेत्र में केवल दीपावली अथवा बड़ी दिवाली तथा बूढ़ी दिवाली के दौरान ही बुड़ेछू नृत्य होता है तथा इसे बूढ़ा अथवा बुड़ियाचू नृत्य भी कहा जाता है।
स्थानीय लोग बुड़ेछू दल के सदस्यों को नकद बक्शीश के अलावा घी के साथ खाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजन भी परोसते हैं तथा इस परम्परा को ठिल्ला कहा जाता है। दीपावली के दूसरे दिन क्षेत्र में जहां बैलों की पूजा की जाती है, वहीं भैया दूज पर दामाद अपनी सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बहरहाल क्षेत्र में सदियों से इस तरह दीपावली मनाने की परंपरा कायम है। एक माह बाद आने वाली अमावस्या से ग्रेटर सिरमौर कईं गांव में सप्ताह भर चलने वाली बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है तथा कुछ गांवों में इसे मशराली के नाम से भी मनाया जाता है। ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार में दीपावली के अलावा लोहड़ी, गूगा नवमी, ऋषि पंचमी व वैशाखी आदि त्यौहार भी शेष हिंदोस्तान से अलग अंदाज में मनाए जाते हैं।
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