कोविड-19 के चलते रेणुकाजी स्नान में नहीं जुटी भीड़
News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)
सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र व उपमंडल संगड़ाह में बुधवार को बैलों की पूजा व कन्याओ द्वारा दीवार लेखन के साथ पारम्परिक ढंग से ज्ञास पर्व मनाया गया। ज्ञास अथवा एकादशी पर बैल-पूजन के अलावा इस दिन रेणुकाजी झील में स्नान करने की परंपरा भी सदियों से गिरिपारवासी कायम रखे हुए हैं। इस बार कोविड-19 व प्रशासन द्वारा भीड़ न जुटाने के निर्देश दिए जाने के चलते स्नान अथवा रेणुकाजी मेले में बहुत कम लोग पंहुचे। आज के दिन मेले में आने वाले साधुओं अथवा गरीब लोगों को मक्की, अन्य अनाज तथा पैसे आदि भी दान मे दिए जाते है।
ज्ञास अथवा एकादशी की सुबह जहां स्लेट पत्थर पर बैलों की तस्वीरें बनाकर इसकी पूजा की गई, वहीं इसके उपरांत किसानों की आजीविका का मुख्य साधन समझे जाने वाले बलों के सींगों में लाल मिट्टी अथवा गेरू लगाया गया। इस अनूठे त्योहार में बैलों को पारंपरिक व्यंजन भी खिलाए जाते हैं। दीपावली के 11 दिन बाद आने वाली ज्ञास पर कन्याएं अथवा अविवाहित लड़कियां गांव के सभी घरों में गेरू से रंगोली तथा देवताओं चित्र को बनाती है तथा इस परंपरा को छिमावणी के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण घर में रंगोली तथा दीवार लेखन करने वाली कन्याओं को अनाज तथा पैसे भी देते हैं।
ग्रामीणों द्वारा दिए जाने वाले अनाज से लड़कियां अथवा कंजकें सहभोज का आयोजन करती है। रलिआजा कहलाने वाले सहभोज के प्रसाद के रूप मे पारम्परिक व्यंजन गांव के को सभी परिवारों को बांटे जाते हैं। ज्ञास के अलावा गिरिपार मे दूज, माघी त्योहार, पांजवी व गुगावल आदि त्योहार भी शेष हिन्दोस्तान से अलग अंदाज में मनाए जाते हैं। बहरहाल गिरिपार मे ज्ञास पर्व पर बैलपूजन की परंपरा कायम है तथा ज्ञास अथवा एकादशी स्नान अंतर्राष्ट्रीय मेला रेणुकाजी का एक अभिन्न हिस्सा है।
Recent Comments