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हिमाचल प्रदेश में दीमक की कई प्रजातियां ठोस कचरे को चट करेंगी। इनमें से कुछ तो प्लास्टिक कचरे को भी खा रही हैं। राज्य के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, पालमपुर विश्वविद्यालय समेत कई संस्थान इस बारे में शोध में जुट गए हैं। इसके लिए दीमक की कई प्रजातियां चिह्नित की गई हैं। उनके पेट का बैक्टीरिया इस कचरे को गलाने में मदद कर रहा है। वैज्ञानिकों के इस प्रयोग की प्रारंभिक अवस्था के सफल होने के बाद इससे संबंधित तकनीक राज्य के कई क्षेत्रों में लागू की जा सकती है।
इस संबंध में एक शोध को ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छापा गया है। इसके अनुसार पृथ्वी की सेटिंग में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक ठोस कचरे का अनुचित निपटान है। ठोस कचरे के पहाड़ हर देश में बढ़ रहे हैं, जिससे ठोस कचरा प्रबंधन पृथ्वी पर लगभग हर जगह एक चुनौती है। कीड़ों की कुछ प्रजातियां कचरे से लिग्निन और सेल्यूलोज को पचाने में सक्षम हैं। इनमें से दीमक सबसे अधिक उपयोगी हैं और ये मैला ढोने वालों के रूप में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। माइक्रोफ्लोरा जो दीमक की आंत में रहते हैं, उनकी अपशिष्ट क्षमता में योगदान करते हैं। दीमक प्रमुख मृदा पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधकों के रूप में कार्य करते हैं और कार्बनिक पदार्थों और समग्रता को तोड़ने और पुनरावृत्ति करने में सक्षम होते हैं।
हालांकि, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए दीमक की क्षमता का अभी और पता लगाने की भी जरूरत है। इस शोध में हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली विभिन्न दीमकों की प्रजातियों और उनकी चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है। इस अध्ययन का उद्देश्य सक्षम अधिकारियों, शोधकर्ताओं को सुझाव और सिफारिशों के माध्यम से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में दीमक के उपयोग की खोज करके वर्तमान प्रणाली के सुधार की दिशा में काम करना है। वैज्ञानिकों का यह कहना है कि प्रदेश में दीमक की कुछ प्रजातियां प्लास्टिक कचरे का अपघटन करने में सक्षम पाई गई हैं। ये मल्टी लेयर प्लास्टिक को चाटकर गला रही हैं। इन प्रजातियों पर शोध हो रहा है
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