News portals-सबकी खबर (संगड़ाह )
अंतर्राष्ट्रीय मेला रेणुकाजी इस बार व्यापारियों के लिए घाटे का सौदा रहा, हालांकि औपचारिक समापन के बावजूद शनिवार को भी मेला बाजार में खरीदारी का दौर जारी रहा। मेले में लगी 400 के करीब छोटी-बड़ी दुकानों मे से अधिकतर कारोबारियों अनुसार वह घाटे से बचने अथवा मुनाफे की उम्मीद में 2-4 दिन और यहां रहकर कमाई करने के इच्छुक है। मेला व्यापारी रमेश, रहमान, अनिल कुमार, चिंटु, विजेंद्र, अखिल सुरेश व आफताब आदि ने बताया कि, इस बार वर्ष 2018 व 19 की अपेक्षा कम खरीदारी हुई। मेला व्यापारियों के अनुसार हालांकि उद्घाटन समारोह मे मुख्यमंत्री के पंहुचने तथा एकादशी स्नान तथा समापन समारोह के दौरान काफी भीड़ दिखाई दी, मगर भीड़-भाड़ मे खरीदार कम थे। कोरोना काल के चलते 2 साल बाद शुरू हुए इस मेले से उन्हें अच्छी कमाई की उम्मीद थी। मेले मे लगी बसों से एचआरटीसी द्वारा 7 दिनों में कुल 9,88,360 ₹ कमाई की गई। एचआरटीसी के मेला प्रभारी सुखराम ने बताया कि, निगम द्वारा क्षेत्र में चलने वाली 12 बसों के अलावा 14 अतिरिक्त बसें लगाई गई थी, हालांकि उन्हें उम्मीद से कम कमाई हुई है। इस बार निगम अथवा सिरमौर जिला प्रशासन द्वारा अन्य डीपो की बसें नही मंगवाई गई थी।
मेले से वर्ष 2018 व 19 की तरह इस बार भी विकास बोर्ड को एक करोड़ के करीब आमदनी का अनुमान है, हालांकि अब तक उपायुक्त सिरमौर अथवा विकास बोर्ड अध्यक्ष की ओर से प्लॉट आवंटन, चढ़ावा व स्मारिका से हुई इनकम का व्यौरा दिया जाना शेष है। वर्ष 2017 से केवल प्लॉट आवंटन से बोर्ड को 70 लाख के करीब आमदनी हो रही है। मेले में इस बार सांस्कृतिक संध्या आयोजित न किए जाने के कारण विकास बोर्ड को अथवा जिला प्रशासन को करीब 40 लाख का फायदा बचत होगी। प्लॉट बेचने तथा चढ़ावे की आमदनी का हिसाब किताब रखने वाले राजस्व कर्मी विरेंद्र व अशोक के मोबाइल पर संपर्क के बावजूद शनिवार को कोई प्रतिक्रिया नही मिल सकी। मेला अधिकारी एंव तहसीलदार ददाहू चेतन चौहान ने बताया कि, अभी प्लॉट आवंटन तथा चढ़ावा आदि साधनों से विकास बोर्ड को होने वाली आमदनी व्यौरा तैयार होना शेष है। गौरतलब है कि, 1982 में रेणुकाजी बोर्ड के गठन तथा मेले का आयोजन प्रशासन अथवा डीसी सिरमौर के नैत्रित्व मे करवाए जाने के बाद यहां प्लॉट आवंटन से हर साल ज्यादा कमाई की कोशिश के चलते डेरा परंपरा को समाप्त किया जा चुका है। इसके अलावा आतिशबाजी व जातर की परंपरा भी समाप्त हो गई। सदियों से भगवान परशुराम के मां रेणुकाजी से मिलने के आने के अवसर पर आयोजित होने वाले इस धार्मिक मेले को प्रशासन द्वारा पहले सांस्कृतिक और फिर व्यापारिक रूप देने की कोशिश की गई तथा 2000 के दशक मे यहा डेरा परम्परा समाप्त किए जाने के बाद श्रदालुओं अथवा मेलार्थियों की संख्या घटती गई। परंपराओं से छेड़छाड़ के बाद यहां युवा पीढ़ी की आस्था व व्यापार धीरे-धीरे कम होने लगे।
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