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November 23, 2024

हैरिटेज इमारतों में आज भी पर्यटन की बजाय चलाए जा रहे सरकारी दफ्तर

News portals-सबकी खबर (नाहन)

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर का मुख्यालय नाहन आजादी के 75 वर्ष पूरा होने के बावजूद हिमाचल के साथ-साथ देश व विश्व के पर्यटन मानचित्र पर आने को व्याकुल है। सिरमौर रियासत के तत्त्कालीन शासक शमशेर प्रकाश द्वारा सन 1875 में तराशा गया फाउंडरी का सपना सन 1988 में पूरी तरह धराशाही हो गया था। जहां देश की गुलामी नाहन फाउंडरी के लिए संजीवनी थी तो वहीं भारत की आजादी इस खुशहाल फाउंडरी के लिए सबसे बड़ी दुर्भाग्य साबित हुई। जबकि नाहन शहर में तालाबों के अलावा बहुत सी हैरिटेज इमारतें आज भी हैं, मगर दुर्भाग्य यह है कि जहां यह इमारतें पर्यटन के नजरिए से महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए थी। वहीं इन सभी हैरिटेज भवनों पर आज भी सरकारी कार्यालय चले हुए हैं। इसमें चाहे उपायुक्त कार्यालय नाहन की बात की जाए या वन अरण्यपाल के अलावा जिला चिकित्सा अधिकारी, अमर बोर्डिंग, एसडीएम आफिस, तहसील, बिल्डिंग सहित शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला तथा लालकोठी यह सभी हैरिटेज भवन सरकारी विभागों के अधीन हैं। यही नहीं शहर में चारों तरफ अलग-अलग विभागों के कार्यालय भी बिखरे पड़े हैं। जबकि आज भी यह नाहन फाउंडरी न केवल शहर के लिए बल्कि पूरे प्रदेश के लिए वरदान साबित हो सकती है। भले ही प्रदूषण के कारण के चलते इस फाउंडरी को फिर से नहीं चलाया जा सकता, मगर इसकी कई एकड़ जमीन में शहर के भाग्य की रेखाएं बनी हुई हैं केवल इसे कोई पढ़ नहीं पा रहा है। सन् 1964 में यह फैक्ट्री केंद्र सरकार से हिमाचल सरकार को हस्तांतरित हो गई थी। बस तभी से ही इसके दुर्भाग्य के दिन शुरू हो गए थे।सिरमौर रियासत के महाराजा ने इस फाउंडरी को किसी भी सूरत में डूबने और टूटने नहीं दिया। इस फैक्ट्री में बने सयंत्र कोलकाता से लेकर लाहौल तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अपनी गुणवत्ता का लोहा मनवाते थे। यही नहीं नाहन फाउंडरी की बहुत सी जमीनी संपत्तियां अन्य राज्यों में भी थी, मगर धन पिपासुओं की अनुचित महत्त्व आकांक्षाओं के चलते न केवल वह जमीनें बिक गई, बल्कि फाउंडरी में रखे हुए बेशकीमती पुरातत्त्व की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण दस्तावेज और इंग्लैंड, जर्मन आदि के बने ढेड़ सौ साल से भी पुराने उपकरणों को कबाड़ के दाम में बेचा गया। नाहन फाउंडरी आज भी एक उचित दूरदर्शी महानायक की राहें ताक रही है।नाहन शहर रियासतकालीन ऐहितासिक शहर है। इस रियासत की सीमाएं हरिद्वार, नरेंद्रनगर, टिहरी गढ़वाल से लेकर अंबाला, कालका-परवाणू से होती हुई रामपुर बुशहर के साथ लगते क्षेत्रों से होकर गुजरा करती थी। यह रियासत आज भी बड़े रहस्य और कहानियां खुद से समेटे हुए हैं। 

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