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सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व Traditions के संरक्षण के लिए मशहूर Giripaar aria में यूं तो बुधवार को अमावस्या से साल का सबसे अहम Festival Budhi Diyali शुरू हो गया था, मगर मशाल यात्रा, राक्षसराज Raja Bali के जयघोष व उनके 99 अश्वमेध यज्ञ की स्मृति में विशाल अलाव जलाए जाने की महत्वपूर्ण Traditions गुरुवार सुबह 4 बजे निभाई गई। इस दौरान कुल देवताओं के जयघोष व Hajura नारे भी कुछ स्थानों पर लगे। शिलाई हल्के के लगभग सभी बड़े गांवों में जहां बूढ़ी Diwali मशाल यात्रा से मनाई जाती है, वहीं उपमंडल संगड़ाह के भराड़ी, चोकर व रजाणा आदि गांव में इस दौरान Mashrali के नाम से Culture Nights का दौर चलता है। हिंदी में बोलचाल के दौरान हांलांकि दियाली पर्व को बूढ़ी दिवाली कहा जाता है, मगर वास्तव में अंवास, Bhinwari, तीज व चौथ आदि नामों से सप्ताह भर चलने वाले इस त्योहार में न तो दीपक जलाए जाते हैं और न ही माता लक्ष्मी का पूजन होता है। बूढ़ी दियाली को लेकर हालांकि किसी सिरमौर साहित्यकार अथवा शोधकर्ता द्वारा अब तक संतोषजनक अथवा Scientific research किया जाना शेप है, मगर Transgiri के लोक संस्कृति प्रेमी व बुजुर्ग इसका संबंध दानवीर राक्षसराज बली द्वारा 99 अश्वमेध यज्ञ व Vaman Avtar को 3 पग भूमि दान तथा उनके पाताल जाने से मानते हैं। त्यौहार में अश्वमेध यज्ञ की स्मृति में विशाल अलाव जलाए जाने तथा बली राजा का जयघोष इसे साबित करता है। भगवान विष्णु द्वारा भक्त प्रल्हाद के वंशज राजा बली को Patal पंहुचाएं जाने के बाद अपने वरदान के चलते जब वह खुद भी पाताल में उन्हीं के साथ रहने लगे तो मां Laxmi ने राजा को रक्षा सूत्र बांध भाई बनाया और फिर उनसे भगवान अथवा अपने पति को मांगा। इस दौरान राजा बली के कहने पर कुछ दिन उन दोनों के पाताल में बतौर मेहमान रहने का जिक्र भी कथा में आता है और दियाली के दौरान भी सप्ताह भर मेहमानों को मूड़ा, शाकुली, तेलपाकी, पटांडे, अस्कली व सीड़ो आदि पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं। मीडिया व Social Media पर इस बारे खबर अथवा Story मे interest पैदा करने के लिए हालांकि कुछ लोग गिरिपार के लोगों को भगवान राम के लौटने की सूचना 1 माह बाद मिलने व पांडवों के अज्ञातवास से लौटने की बात का भी कईं बार जिक्र करते हैं, मगर लोक साहित्य में रुचि रखते वाले लोग व क्षेत्र के बुजुर्ग स्थानीय बोली में बली राजा अथवा बड़ा राज कहलाने वाले दानवीर राजा बली से ही इसका संबंध मानते हैं। गिरिपार में न केवल बूढ़ी दियाली बल्कि माघी त्योहार, गूगा नवमी, दूज व ऋषि पंचमी आदि त्योहार भी शेष हिंदोस्तान से अलग अंदाज में मनाए जाते हैं।
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