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November 22, 2024

नर्सरी टीचर ट्रेनिंग के मामले को लेकर सुनवाई पूरी,आज आयगा फैसला

 News portals-सबकी खबर (शिमला) 

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नियमों के विरुद्ध नियुक्ति के मामले में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है| प्रदेश में चल रहे कुछ निजी संस्थानों में करवाई जा रही नर्सरी टीचर ट्रेनिंग के मामले को लेकर राज्य में निजी शिक्षण संस्थान विनियामक आयोग की अदालत में सुनवाई पूरी हो गई है। यह फैसला आयोग की ओर से सुरक्षित रखा गया है।बुधवार को इसका फैसला सुनाया जाएगा। मंगलवार को विनियामक आयोग की अदालत में प्रारंभिक शिक्षा विभाग और एनसीएफएसई ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के निदेशक ने अपना पक्ष रखा। कुछ निजी संस्थानों पर हिमाचल प्रदेश में बिना पंजीकरण एनटीटी करवाने का आरोप है। सरकारी स्कूलों में 4,000 प्री प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती से पहले आयोग की अदालत में इन संस्थानों को लेकर शिकायत दर्ज हुई थी। आरोप है कि निजी शिक्षण संस्थानों के साथ कुछ कंपनियों के एमओयू को लेकर हिमाचल सरकार को जानकारी नहीं दी गई। संबंधित विभागों को इस बात से अवगत नहीं कराया गया। फीस स्ट्रक्चर की जानकारी भी शिक्षा विभाग को नहीं दी गई। आयोग की अदालत में इस मामले को लेकर दो बार सुनवाई हो चुकी है। मंगलवार को अदालत ने सभी पक्षों से रिकॉर्ड ले लिया है। राज्य शिक्षक अवार्ड के मामले में अदालत को बताया गया कि इस बारे में सिर्फ सरकार निर्णय लेती है। प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने शपथपत्र के माध्यम से अदालत में यह जानकारी दी है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग के जवाब पर असंतोष जताया है। खंडपीठ ने प्राथमिक शिक्षा निदेशक को आदेश दिए हैं कि वह इस बारे में बनाए गए नियमों की जानकारी अदालत को सौंपे। मामले की सुनवाई 7 दिसंबर को निर्धारित की गई है। राज्य सरकार की ओर से दायर जवाब में शिक्षा निदेशक ने बताया कि विशेष अवार्ड देने के लिए सरकार ने राज्यस्तरीय कमेटी का गठन किया है। आरोप लगाया गया है कि शिक्षा विभाग ने बिना पारदर्शिता के तीन शिक्षकों को राज्य शिक्षक अवार्ड दिया है। इनमें कुल्लू जिला के गजेंद्र सिंह ठाकुर, मंडी के हरीश कुमार और सिरमौर के सुरेंद्र सिंह को राज्य शिक्षक अवार्ड दिया गया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार अपनी मर्जी से राज्य शिक्षक अवार्ड के लिए शिक्षकों को चुनती है।अदालत के समक्ष उपस्थित रजिस्ट्रार ने बताया कि विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी परिषद ने याचिकाकर्ता को नियमित करने की स्वीकृति दे दी थी। जबकि वित्त कमेटी ने इसे खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा कि  वित्त कमेटी में भी विश्वविद्यालय के ही अधिकारी हैं। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने याचिकाकर्ता को नियमित करने के बारे में उचित निर्णय लेने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत भर्ती मामले में रजिस्ट्रार को तलब किया गया था। मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद अदालत ने पाया था कि सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत सैकड़ों नियुक्तियां की गईं। इतना ही नहीं, उन्हें नियमित करने के बाद विश्वविद्यालय के विभागों में उस समय भेजा गया, जब पद खाली नहीं थे। याचिकाकर्ता विजय कुमार ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों को नियमों के विरुद्ध नियुक्त किया गया। इनमें सहायक, क्लर्क और चपरासी शामिल हैं। हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय के 130 आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण पर पहले ही रोक लगाई है। इनकी भर्ती नियमों के  विपरीत किए जाने का आरोप लगाया है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि ऐसे कर्मचारियों को नियमित न किया जाए, जिन्हें भर्ती एवं पदोन्नति नियमों को दरकिनार कर नियुक्त किया गया है। आरोप लगाया गया है कि विश्वविद्यालय में रिक्त पदों को भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के तहत भरने की बजाय आउटसोर्स के आधार पर भरा जा रहा है।

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