News portals-सबकी खबर (कुल्लू)
लाहौल-स्पीति फिर कश्मीरी विलो के पेड़ों से हरा-भरा होगा। पेडो की उम्र पूरी होने से विलो के करीब 80 फीसदी पेड़ सूख गए हैं। जिसे देखते हुए वन विभाग ने लाहौल घाटी के लोगों को इस प्रजाति के डेढ़ लाख निशुल्क पौधे देने का निर्णय लिया है। इन पोधों का रोपण घाटी के लोग फरवरी से अप्रैल तक कर सकते हैं,इन पेड़ों को उगाने के लिए शीत (ठंडे) स्थलों की जरूरत होती है। कश्मीर के बाद लाहौल-स्पीति की भूमि भी इसके लिए उपयुक्त है। कश्मीरी विलो के पेड़ों को बड़े होने में 15 से 20 साल लगते हैं। लाहौल की सामाजिक संस्था जन चेतना समिति ने घाटी में हजारों पेड़ों के सूखने पर चिंता जताई थी। समिति के अध्यक्ष टशी अंगरूप, वरिष्ठ सलाहकार रंजीत क्रोफा और मीडिया प्रभारी रमेश कुमार ने कहा कि उन्होंने वन मंडलाधिकारी लाहौल से मुलाकात कर इस समस्या से अवगत करवाया। इसके बाद विभाग ने विलो के पौधे निशुल्क बांटने की बात कही है। इस पेड़ की पत्तियों को लाहौल में बड़े पैैमाने पर पशुचारे और ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। लगातार सूख रहे पेड़ों से न केवल शीत मरुस्थल की हरियाली पर असर पड़ रहा है बल्कि पशुचारे का भी संकट खड़ा हो गया है। इसके विकल्प के तौर पर विभाग की नर्सरी में तैयार विलो के पौधों को लोगों को मुफ्त में बांटा जाएगा। जम्मू-कश्मीर में विलो के पेड़ से क्रिकेट बैट भी बनाए जाते हैं। पहले इस पेड़ को काटा जाता है। इसके बाद सूखाकर क्रिकेट बैट का निर्माण किया जाता है। कश्मीरी विलो की लकड़ी मजबूत और वजन में हल्की होती है। कश्मीरी विलो पर्णपाती पेड़ों और झाड़ियों की एक प्रजाति है और पेड़ की लंबाई 10 से 30 मीटर तक होती है। बैट बनाने के अलावा इस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल संदूक, टोकरी आदि बनाने के लिए भी किया जाता है।
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