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November 25, 2024

“होली के रंग, राष्ट्र निर्माण के संग” युग युगांतर से होली का पर्व अज्ञान, असत्य और अन्धकार स्वरुप ‘होलिका’ पर ज्ञान, सत्य, शील, भक्ति और प्रकाश स्वरूप ‘प्रहलाद’ की विजय का प्रतीक है। स्वामी विज्ञानानंद !

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“दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान” द्वारा अपने स्थानीय आश्रम में “होली” के पावन पर्व के उपलक्ष्य में दो दिवसीय “विलक्षण योग एवं ध्यान शिविर के आज द्वितीय दिवस संस्थान की ओर से “श्री आशुतोष महाराज जी” के शिष्य स्वामी विज्ञानानंद ने बताया कि आर्यावर्त जगद्गुरु भारत दिव्य पर्वों दिव्य भूमि है। यहाँ मनाया जाने वाला प्रत्येक पर्व आध्यात्मिक एवं आत्मिक स्तर की उपज है। परन्तु आधुनिक वैज्ञानिक युग में जहाँ भौतिक विज्ञान द्वारा भौतिक सुख सुविधाओं का विकास हुआ है वहीँ मनुष्य की आंतरिक एवं आत्मिक क्षमताओं का हनन हो रहा है। चूंकि आज भारतवासी प्रत्येक पर्व को भौतिक और बौद्धिक स्तर पर मनाते है फलतः होली, विजयदशमी, दीपावली, लोहड़ी जैसे प्रत्येक पर्व अपनी गरिमा खोते हुए प्रतीत हो रहे हैं।


स्वामी जी ने “होली” पर्व की तात्विक परिभाषा के बारे में बताते हुए कहा कि युग युगांतर से होली का पर्व अज्ञान, असत्य और अन्धकार स्वरुप ‘होलिका’ पर ज्ञान, सत्य, शील, भक्ति और प्रकाश स्वरूप ‘प्रहलाद’ की विजय का प्रतीक है। विडम्बना है कि आज भारत देश में होली के पावन पर्व पर युवा वर्ग नशा करता है व रासायन युक्त अबीर व गुलाल का प्रयोग कर व जल की व्यर्थ बर्बादी कर इस पर्व को विकृत रूप प्रदान कर रहा है। आज आवश्यकता है कि इस पर्व पर नशे की, आतंकवाद की, भ्र्ष्टाचार की,अज्ञानता की, आलस्य की होलिका जलाएं व जल बचाकर “वंदे मातरम्” के स्वप्न को साकर करते हुए अपनी भारतीय संस्कृति का संरक्षण करें। जिससे सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण हो सके।


ध्यान देने योग्य है कि आज संस्थान के “अन्तरक्रान्ति” प्रकल्प “कारागार सुधार परियोजना एवं पुनर्वास कार्यक्रम” के अंतर्गत “तिहाड़ जेल” में कैदी बंधु जनों द्वारा संस्थान के सहयोग से समाज कल्याण व कैदी बंधुओं के उत्थान हेतु पलाश के फूलों व आयुर्वेदिक उत्पादों से प्राकृतिक गुलाल तैयार किये जाते हैं। जोकि पूर्णतः रासायन मुक्त होने के कारण स्वास्थ्य हेतु भी लाभप्रद हैं। आज आश्रम परिसर में जहां विश्व शान्ति की मंगल कामना करते हुए साधकों ने सामूहिक ध्यान एवम् दिव्य मन्त्रों का विधिवत उच्चारण किया वहीँ साधकों नेहोली के रंग, राष्ट्र निर्माण के संग की उक्ति को क्रियान्वित कर “तिलक होली” मनाते हुए एक दूसरे को प्राकृतिक रंगों से “तिलक” लगा कर समाज को जल बचाने का सन्देश भी दिया। साध्वी सरब भारती व इश्वरप्रीता भारती ने दिव्य भजनों का गायन कर साधकों का सकारात्मक मार्ग दर्शन भी किया।

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