News portals-सबकी खबर (धर्मशाला)
हिमाचल में मछली का कारोबार दिन प्रतिदिन सिमटता जा रहा है। इसकी वजह मौसम की बेरुखी, कांगड़ा जिले में स्थित प्रदेश की सबसे बड़ी पौंग झील में घटता जलस्तर और प्रवासी पक्षियों की बेतहाशा आमद है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो पहले रोजाना करीब 30 क्विंटल मछली का कारोबार हो रहा था, लेकिन अब यह 15 से 20 क्विंटल तक ही सिमट कर रह गया है। बाहरी राज्यों की मछली मंडियों को ऑर्डर के हिसाब से मछली नहीं मिल पा रही है। मछली मंडियों का ऑर्डर पूरा कर पाना मछली ठेकेदारों के लिए मुश्किल हो रहा है।पौंग झील में करीब 2500 मछुआरे प्रतिदिन 15 से 20 किलो मछली पकड़ते थे, लेकिन अब एक से डेढ़ किलो मछली ही पकड़ पा रहे हैं। पौंग झील के अंतर्गत 15 फिशरीज सोसायटीज हैं। इसमें हर सोसायटी में प्रतिदिन 2 से ढाई क्विंटल तक मछली आती थी, लेकिन मौजूदा समय में हर सोसायटी में एक से डेढ़ क्विंटल मछली कम आ रही है। पौंग झील की मछली की हिमाचल ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य पंजाब में भी काफी डिमांड रहती है, पौंग झील में राहु, कतला, सिंगाड़ा, मोरी, महाशीर, सोल इत्यादि प्रजाति की मछली पाई जाती हैं।सिंगाड़ा प्रजाति की मछली सबसे अधिक पाई जाती है, जबकि राहु प्रजाति की मछली को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।लेकिन बढ़ती ठंड के कारण झील का ऊपरी पानी ठंडा हो जाता है तथा गहरा पानी गर्म रहता है। इस कारण बड़ी मछलियां गहरे पानी की तरफ चली जाती हैं, जबकि जो छोटी मछलियां किनारों पर आ जाती हैं, उनको प्रवासी पक्षी खा जाते हैं। यही नहीं, जाल में फंसी हुई मछलियों को भी प्रवासी पक्षी चट कर जाते हैं। ऐसे में मछुआरों को मछलियां नहीं मिल पाती। कई बार उन्हें खाली हाथ झील से लौटना पड़ता है, जिसका असर कारोबार पर पड़ रहा है।
Recent Comments