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November 27, 2024

जन्म से मृत्यु पर्यन्त सारे जगत के प्राणियों को अपने ऊपर धारण करने वाली धरती सब की “माँ” है: स्वामी विज्ञानानंद/ भारतीय नव संवत्सर 2076″ के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय “विलक्षण योग शिविर।

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अबोहर की गौशाला में “दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान” की ओर से “विश्व स्वास्थ्य दिवस” और “भारतीय नव संवत्सर 2076” के उपलक्ष्य में स्थानीय मुख्य “गौशाला” में आयोजित तीन दिवसीय “विलक्षण योग शिविर” के अंतिम दिवस संस्थान की ओर से “श्री आशुतोष महाराज जी” के शिष्य योगाचार्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने बताया कि जन्म से मृत्यु पर्यन्त सारे जगत के प्राणियों को अपने ऊपर धारण करने वाली धरती सब की “माँ” है। तभी तो इसे “मातृ भूमि” भी कहा जाता है। परंतु खेद का विषय है कि कृषि प्रधान भारत देश के अधिकतर किसान आज फसल काटने के बाद गेहूं की नाड़ के रूप में अपनी धरती माँ के वक्ष स्थल पर आग लगा रहे हैं।

जिससे प्राकृतिक आपदाएं भी बढ़ रहीं हैं। स्वामी जी ने गेहूं की नाड़ को आग लगाने के दुष्परिणाम बताते हुए कहा कि इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होने के साथ फसलों के मित्र कृमि भी मर जाते हैं जिससे फसलों को अधिक बीमारियां लगने के कारण इन्हें नियंत्रण करने के लिए फसलों पर रासायनिक खादों के रूप में और अधिक जहर का छिड़काव करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण में फैलता हुआ विषैला धुंआ फेफड़ों और आँखों की गम्भीर बीमारियों का कारण बनता है। जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। स्वामी जी के अनुसार मानव मन की आरोग्यता ही मनुष्य के तन की आरोग्यता का मूल है। भारत के अनुभवी स्वास्थ्यविदों के अनुसार मनुष्य की 90% बीमारियों का कारण इंसान का मन ही है ओर मन के स्तर पर उपजी जीवन की समस्याओं का निराकरण भी मन के स्तर पर उतर कर ही किया जा सकता है। जोकि योग के मूल आत्म योग को प्राप्त करके ही किया जा सकता है।


स्वामी जी ने बताया की वैदिक योग पद्धति भी इस तथ्य को स्वीकार करती है कि स्वस्थ शब्द दो शब्दों से मिल कर बना शब्द है स्व + स्थ अर्थात स्वयं में स्थित होना ही स्वस्थ रहने का मूल है। बाह्य यौगिक क्रियाओं द्वारा जहाँ तन को स्वस्थ रखा जाता है वहीँ ब्रह्म ज्ञान से प्राप्त ध्यान साधना की क्रिया से मन स्वस्थ रहता है। जोकि मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन व सामाजिक जीवन हेतु अति लाभप्रद है।

प्रकृति का योग के साथ संबंध बताते हुए स्वामी जी ने योग साधकों को पौधारोपण करने व जल सरंक्षण करने की प्रेरणा भी दी। स्वामी जी ने साधकों को सूर्य नमस्कार, वीरभद्रासन, अनुलोम विलोम प्राणायाम, कपोल शक्ति विकासक प्राणायाम, चक्षु व्यायाम इत्यादि क्रियों का विधिवत् अभ्यास करवाते हुए इनके शारीरिक लाभों से भी परिचित करवाया। इस विशेष उपलक्ष्य में कार्यक्रम के अंत में साधकों ने प्राणपन से धरती माँ का रक्षण करने के लिए फसलों की नाड़ ना जलाने, नशा न करने, चरित्र निर्माण, जल संरक्षण, पौधारोपण कर प्रकृति ओर संस्कृति का संरक्षण करने का सामूहिक संकल्प भी लिया।

कार्यक्रम के अंत में आज अपने “संरक्षण” प्रकल्प के अंतर्गत अप्रैल फूल की जगह “अप्रैल कूल” की अवधारणा पर बल देते हुए संस्थान द्वारा गौशाला के तत्वाधान में स्वामी विज्ञानानन्द ने गौशाला अध्यक्ष फकीर चन्द गोयल, साध्वी बागीशा भारती, तेजस्विनी भारती और साधकों के साथ मिलकर पौधारोपण भी किया गया। साधकों ने सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करते हुए तथा कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए संस्थान का हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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