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November 16, 2024

पहाडो में दम तोड़ रहा घराट का प्रचलन/…आधुनिक युग में परम्परागत लघु उधोग हो रहा खत्म /…घराट चलाने वालों के सामने रोजी रोटी का संकट ।

न्यूज़ पोर्टल्स:सबकी खबर

 

घराट पहाड़ों की परम्परा धरोहर रहे हैं। पानी से चलने वाला घराट बंद होते जा रहे हैं। आज घराट चलाने वालों के सामने रोजी – रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो चुका है।
हिमाचल प्रदेश, जिला सिरमौर शिलाई क्षेत्र के बोराड़ खड्ड के पास पानी का घराट चलाने वाले जगत सिंह व खत्री राम दोनो डाबरा गांव के रहेने वाले है। जो कि तीन पीड़ियो से लोगों को घराट का पीसा हुआ आटा दे रहें है। लेकिन, अब इनके लिए घराट चला पाना आसान नहीं वैसे वजह भी वाजिब है।


बोरहड़ के रहने वाले स्थानीय लोग दलीप शर्मा, सूरत सिंह, शुभष शर्मा, दिनेश,आदेश, मदन, इंदर शर्मा, खजान शर्मा व सुरेंदर शर्मा ने बताया कि यह कभी पहाड़ की परंम्परा का हिस्सा रहने वाले पानी से चलने वाले घराट इस आधुनिक युग में लगभग खत्म हो चुके है।
जो घराट अभी बचे भी हैं, अगर समय रहते कोई कदम नहीं उठाया, तो ये भी अब खंडर में बदल जाएंगे।

घराट के संचालक जगत सिंह व खत्री राम का कहना है कि इन घराट को बचे खुचे लोग इस पुरानी धरोहर को बचा कर रखना चाहते है। लेकिन प्रदेश सरकार बेरूखी दिखा रही है। घराट भी लाचार सिस्टम के आगे पिसने को मजबूर हो चुके है। एक तो कुदरत की मार ऊपर से इनके मुंह तक से निवाला छीना जा रहा है। पानी से चलने वाले घराट खुद पानी को तरस रहे हैं।

जगत सिंह व खत्री राम ने कहा को दिनरात पानी के घराट में डटे रहते है। आमदनी कितनीे होती है इस सवाल के जवाब में इनके आंखों से निकलने वाले आंसुओं को ये रोक देेंते है। ताकि जग हसाई ना हो। इस महंगाई के ज़माने में इनकी आमदनी कितनी है। ये आप सुन लीजिए यकीनन शक और सवाल की कोई भी गुंजाईश नहीं बचेगी
न्यूज पोर्टल्स से बात करने पर बताया कि उनकी आमदनी 180 रूपये से ज्यादा नहीं है। वो भी तब जब वो दिन रात काम करते हैं। और कभी कुछ भी नहीं मिलता।

जगत सिंह व खत्री राम जैसे कई लोग आज पानी के घराट को बचाने में लगे हुए है। लेकिन ये घराट कब तक बचे रहेंगे ये कहना मुश्किल है। पानी के घराट पानी को मोहताज रहते है। और इन घराट में जिस तरह आटा पिस रहा घराट चलाने वाले की जिंदगी भी पिस रही है।

वहीं इसी क्षेत्र में अपना पानी का घराट चलाने वाले रमेश कुमार कहते है कि पानी का घराट चलाना उनके परिवार की पुरानी परम्मपरा है लेकिन घराट कब बंद हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। पानी की सरकारी योजनाओं में उनके हिस्से का आधा पानी जा चुका है।हम चाहते है कोई प्यासा ना रहे लेकिन हमारा कारोबार इस लिए बंद होने के कगार पर है। क्योंकि जिन्हें पानी की दरकार नहीं वो भी जबरंग पानी ले जा रहें है। जिससे उनके घराट कभी भी बंद हो सकते है।

कुछ लोग पानी से चलने वाले घराट बचाने के लिए लगे हुए है। उम्मीद है। कि सरकार इस तरफ ध्यान देगी और पहाड़ी परम्मपरा का हिस्सा रहने वाले पानी के घराट को बचाने के लिए आगे आएगी। उम्मीद कम है लेकिन रखनी होगी क्योंकि उम्मीद पर दुनियां कायम है।

वही, इस जगह पर कभी अपना बड़ा पानी का घराट चलाने वाले जगत सिंह व खत्री राम कहते है कि उनके परिवार कीे जिंदगी का हिस्सा कभी पानी से चलने वाला घराट था लेकिन पानी के अभाव और सरकारी संरक्षण ना मिलने के कारण हमें ये पुराना कारोबार बंद करना पड़ा जिसकी मलाल उन्हें ताउम्र रहेंगा ।

सरकार भले ही कुछ भी कहे लेकिन सच ये ही है कि पानी के घराट पहाड़ की कभी खूब पहचान माने जाते थे। आज अगर इनको नहीं बचाया गया, तो वो भी दिन दूर नहीं जब घराट नही रहेंगे।

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