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गिरीपार क्षेत्र के लिए महासू पंचमी से कुछ दिन पहले ही हाटी संस्कृतिक कलामंच ए कफोटा ने लोगो को महासू की वंदना का लोक गान बिरसू ऐल्बम निकली है । यह ऐल्बम बुधवार को देर श्याम रिलीज की गई । इस बिरसू एल्बम को मामराज व प्रताप सिंह ने गाया है। इस एल्बम के डायरेक्टर ए आर शर्मा ओर बी एस कपूर है। इस पहाड़ी महासू की वंदना बिरसू गाने की धुन को तैयार करने वाले नेरवा के म्यूजिक पिंकू तन्ग्रेइक व रविन्द्र राठौर ने किया है । मामराज व प्रताप सिंह ने अपनी सुरीली आवाज में इस भजन को बखूबी से गाया है। इनका साथ गाने में सूरत सिंह, सुरेश कुमार ने दिया है । हाटी की संस्कृति बनाए रखने के लिए हाटी समुदाय के अपने रीति रिवाज के अनुसार हाटी सांस्कृतिक कलामंच कफोटा ए भी समय समय पर हाटी के मनोरंजन के लिए तत्पर रहते हैं। इससे पहले भी इस समुदाय के लोगों ने हाटी की कला संस्कृति को बनाए रखने के लिए तरह-तरह की गाने व एल्बम निकाले गए हैं । जिनको लोगों ने खूब सुना है और सरहाना की है। हाटी सांस्कृतिक कलामंच ए कफोटा ने गिरीपार क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान बनाई है, जिनकी प्रशंसा समूचे प्रदेश भर में की जाती है । जिला सिरमौर में कही भी शादी समारोह होता है तो वहाँ हाटी कलामंच को सबसे पहले निमंत्रण दिया जाता है । बिरसु एलबम में दो दिन में 20 हजार लोगों की पसंदीदा गाना बना चुका है ।
निकली गई बिरसु( ऐल्बम) महासू वंदना में हाटी सांस्कृतिक कला मंच कफोटा ए ने (महासु का माली बिरसू व पाथा) कि गाथा पर इस गाने में दर्शया है ,इस गाने में बताया जाता है कि उत्तराखंड के प्राचीन मंदिर हनोल में महासू का पाथा ग्राम बरमा में रुक गया था तो चार भाई महासु महाराज ने बिरसू को माली मान कर उसे बरमे का कार्य सोंप दिया | जब उसने यह बात अपने घर में बताई तो उसके घर वाले माँ – बाप , नानी और उसकी पत्नी ने बरमा गाँव में जाने से रोकने की कोशिश भी की और यह डराने की कोशिश भी की तुण (झोला) पर तिऊणी पर मादा सिहणी भी है और वह आपको खा जाएगी | लेकिन विरसु यह बोलता है कि मुझे किस बात का डर है | मेरे साथ तो महासु महाराज साथ है घर वाले की बात ना मानते हुए वह बरमा गाँव को चल देता है | चलते – चलते वह तिऊणी पर पहुँच जाता है और टोंस नदी पर लगे तुण ( झोला ) देखता है और देखते – देखते उस पर स्वार हो जाता है । झूले पर सवार होकर बीच टोंस नदी पर जाकर वह तुण ( झोला ) टूट जाता है और विरसु नदी में गिर जाता है। तभी नदी के आर – पार पशु व भेड़ चराने वाले आवाज लगाते है कि महासु का ढाले – सोला जाने दो परन्तु विरसु माली को निकाल दो तब एक शकस नदी में छलांग लगा देता है वह शकस जिसको शुकराड के नाम से जाना जाता है | वह शकस फिर विरसु माली को बाहर निकाल देता | लेकिन बिरसु के पास महासू पाथा टोंस नदी में बह जाता है ओर दिल्ली जा पहुँचता है । ऐसी महासू की रची गाथा को हाटी संस्कृति कला मंच कफोटा ए ने देव गाथा को गाया है ।
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