News portals-सबकी खबर (हमीपुर )
हिमाचल के डॉ. गौरव शर्मा ने न्यूजीलैंड के वैलिंगटन स्थित संसद भवन में मौरी भाषा के अलावा संस्कृत में भी शपथ ली। बीते अक्तूबर में न्यूजीलैंड की हैमिल्टन वेस्ट सीट से डॉ. गौरव ने लेबर पार्टी से चुनाव लड़कर भारी मतों से जीत हासिल की थी। संस्कृत में शपथ लेने के बाद सोशल मीडिया पर डॉ. गौरव का वीडियो जमकर वायरल हुआ। हिमाचल के लोगों ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर वीडियो को शेयर कर देवभूमि के सपूत को बधाई भी दी।
डॉ. गौरव पहले भारतीय हैं, जिन्होंने न्यूजीलैंड की धरती पर संस्कृत में शपथ ग्रहण की है। डॉ. गौरव हमीरपुर के गलोड़ हड़ेटा से संबंध रखते हैं। इनके पिता राज्य बिजली बोर्ड में एसडीओ के पद पर सेवारत रहे, लेकिन नौकरी छोड़कर वह परिवार समेत विदेश चले गए थे। संस्कृत में शपथ लेते हुए पूरे विश्व में भारत का मान बढ़ाने वाले डॉ. गौरव शर्मा का जन्म एक जुलाई 1987 को गिरधर शर्मा और पूर्णिमा शर्मा के घर हुआ था। डॉ. गौरव ने हमीरपुर, धर्मशाला, शिमला और न्यूजीलैंड में शिक्षा ग्रहण की है।
बता दें कि 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके डॉ. शर्मा ने इस बार नेशनल पार्टी के टिम मैकिंडो को हराया है। समोआ और न्यूजीलैंड में भारत के उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी ने ट्विटर पर कहा कि डॉ. गौरव शर्मा ने सबसे पहले न्यूजीलैंड की माओरी भाषा में शपथ ली, उसके बाद संस्कृत में शपथ लेकर उन्होंने दोनों देशों की सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति सम्मान दिखाया। उन्होंने ऑकलैंड से एमबीबीएस किया और वाशिंगटन से एमबीए किया है। वह हैमिल्टन के नवाटन में जनरल प्रैक्टिशनर के रूप में कार्यरत हैं।
एक ट्विटर यूजर ने डॉ. गौरव शर्मा से पूछा कि उन्होंने हिंदी में शपथ क्यों नहीं ली तो उन्होंने कहा कि सभी को खुश करना कठिन है इसलिए मैंने संस्कृत में शपथ लेने का फैसला किया। पहले सोचा था कि हिंदी में शपथ लूं, लेकिन तब मेरी मातृभाषा (पहाड़ी) या पंजाबी को लेकर सवाल उठा। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है, इसलिए मैंने शपथ के लिए संस्कृत को चुना।
परिवार ने किया लंबा संघर्ष
डॉ. गौरव शर्मा ने बताया कि वे 1996 में न्यूजीलैंड चले गए थे। उनके पिता को छह साल तक यहां नौकरी नहीं मिली। परिवार ने बड़ी मुश्किल से वक्त गुजारा। उन्होंने बताया कि मैं समाजसेवा के लिए राजनीति में हूं क्योंकि मेरा परिवार बहुत ही कष्टों से गुजरा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा के रूप में भी मुझे बहुत ज्यादा सरकारी मदद नहीं मिली।
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