News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)
सिरमौर रियासत काल के दौरान Gorkha Sardar के हमले में तोड़े गए Kila Kudon नामक Vijat Maharaj Temple का प्राचीन वैभव फिर से लौटाने व यहां Religious Tourism को बढ़ावा देने के लिए उपमंडल संगड़ाह के नौहराधार के साथ लगती चोकर पंचायत के ग्रामीणों द्वारा सेवा समिति का गठन किया गया है। समिति सदस्य इंद्र सिंह, जगदीश, सुनील वर्मा व पुजारी प्रेम दत्त शर्मा आदि के अनुसार पंचायत द्वारा मंदिर अथवा किले तक कच्ची सड़क भी बनाई जा चुकी है और यदि पर्यटन व भाषा विभाग के अधिकारियों तथा नेताओं का सहयोग मिला तो सर्दियों में कईं दिन तक बर्फ से ढकी रहने वाली कुदौण पहाड़ी जल्द पर्यटक स्थल के रूप में भी जानी जाने लगेगी। गत वर्ष मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद यहां शांत यज्ञ भी करवाया जा चुका है, और 2 दिन पहले में Campus का सौंदर्यीकरण कार्य पूरा होने पर शुद्धीकरण यज्ञ भी हो चुका है।दिवंगत लोक कलाकार रतिराम चेवड़ी की Sirmauri Nati अथवा भक्ति गीत पाणी रे दीवे तथा कुछ अन्य लोक गाथाओं में यहां पानी से दिये जलने व खुद नौबत देवधुन बजने का जिक्र है। Science & Technology के इस दौर में बेशक काफी लोग इस बात पर यकीन न करें, मगर देवता में आस्था रखने वाले चोकर, भंगाड़ी, रिहाड़ा, बांदल, लाना-चेता, नौहराधार, भुटली, मानल व थनगा आदि के ग्रामीणों के अनुसार उन्हें बिजट देवता की शक्ति पर पूरा भरोसा है। इसी इलाके से संबंध रखने वाले Scientific सोच अथवा वामपंथी विचारधारा वाले संगठन के 1 एक पदाधिकारी के अनुसार किला व मंदिर इलाके की सबसे ऊंची पहाड़ी पर होने के चलते बरसात में यहां बादल गरजते रहते हैं और कईं बार गर्जना गिरिपार के देवताओं के दरबार अथवा मंदिर में बजने वाली नौबत धुन से मेल खाती है।उन्होंने कहा कि, बरसात में ज्यादा आसमानी बिजली गिरने व जुगनू की तरह कुछ जीव जंतुओं व पौधों को संभवतः पानी से जलने वाले दिए कहा जाता है। वर्ष 1980 के मंदिर प्रांगण निर्माण के दौरान यहां ग्रामीणों को चूना, सुर्खी व उड़द के गारे से बना कूआं भी मिला, हालांकि करीब 15 फुट मिट्टी निकालने के बाद इसमें जानवरों की हड्डियां मिलने के चलते श्रमदान कर रहे लोक इससे ज्यादा मिट्टी निकालने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। ग्रामीणों के अनुसार खंडहर हो चुके किले के पत्थरों से उन्होंने उस दौरान मंदिर परिसर का निर्माण कर डाला और अब ऐतिहासिक विरासत के रूप में यहां कुआं व मंदिर ही शेष है। क्षेत्र के बुजुर्गों के मुताबिक लगभग 200 साल पहले Gorkha सरदार के Sirmaur रियासत पर हमले के दौरान इस क़िले अथवा मंदिर को तोड़ा गया था।सैनिकों के पंहुचने की भनक लगते ही पुजारी व ग्रामीणों ने मूर्तियां साथ लगते बांदल गांव के मंदिर में स्थापित कर दी थी। तब से अगले करीब सवा सौ साल तक यहां कोई पूजा नहीं हुई और न ही जंगल में मौजूद इस खंडहर की ओर लोग जाते थे। ग्रामीणों के अनुसार यहां के वर्तमान पुजारी प्रेम दत्त भारद्वाज के दादा सोभा राम को करीब 80 साल पहले सपने में बिजट देवता मिले और देवता द्वारा बताई गई जगह पर मंदिर के अवशेष मिलने के बाद यहां उन्होंने हर माह की संक्रांति को पूजा शुरू की। तब से अब तक यहां नियमित संक्रांति पूजन हो रहा है और मंदिर का जीर्णोद्धार कर चुके ग्रामीण इसका पुराना वैभव लौटाने का प्रयास कर रहे हैं।
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