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November 12, 2024

एक माह बाद कईं गांव में मनाई जाएगी बूढ़ी दियाली ,गिरिपार में बुड़ेछू लोक नृत्य के साथ जारी है सप्ताह भर चलने वाला दिवाली उत्सव

News portals -सबकी खबर (संगड़ाह) सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परम्पराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं त्यौहार अलग अंदाज में मनाए जाते हैं, मगर यहां सप्ताह भर चलने वाली दिवाली तथा एक माह बाद आने वाली बूढ़ी दियाली हमेशा चर्चा में रहती है। क्षेत्र में दीपावली से एक दिन पूर्व चौदश से उक्त त्योहार शुरू होता है और इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज, तीज व पंचमी आदि नाम से सप्ताह भर चलता है। बुधवार को चौदश से इलाके में त्यौहार शुरू हो चुका है। दीपावली को अंवास के नाम से मनाए जाने व लक्ष्मी पूजा के बाद अगले दिन मनाए जाने वाले पोड़ोई पर्व पर क्षेत्र मे कुल देवताओं व बैलों अथवा गोवंश की पूजा कर उन्हें पारम्परिक व्यंजन अथवा पकवान परोसे जाते हैं। शनिवार को गिरिपार व साथ लगते धारटीधार इलाके में सास-दामाद दूज मनाई गई। इस दिन दामाद अपनी सास को 100 अखरोट व कुछ अन्य भेंट चढ़ाकर दाम्पत्य जीवन की खुशहाली के लिए उनका आशीर्वाद लेते हैं। इस दौरान इलाके के विभिन्न गांवों में हुल्की, दमेनू, बांसुरी व छणका आदि Traditional Folk Instruments की beat पर Budechhu Folk Dance भी चलता है और कईं गांवों में सांस्कृतिक संध्याओं का भी आयोजन होता है। दिवाली के दौरान अलग-अलग दिन अस्कली, धोरोटी, पटांडे, सीड़ो व तेलपकी आदि पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं। दीपावली के बाद पोड़ोई, दूज, तीज, चौथ व पंचमी आदि नामों से गिरिपार के कईं गांव में सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें से कुछ जगहों पर रामायण व महाभारत आदि का मंचन भी किया जाता है। गिरीपार के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 154 पंचायतों में दिवाली को आज भी इसी तरह पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है। क्षेत्र में कुछ दशक पहले तक बिना पटाखे चलाए पर्यावरण मित्र ढंग से यह उत्सव मनाया जाता था, हालांकि अब देश के अन्य हिस्सों की देखा-देखी में आतिशबाजी दीपावली हिस्सा बन गई है। विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले पारंपरिक बुड़ेछू कलाकारों द्वारा इस दौरान होकू, सिंघा वजीर, चाय गीत, नतीराम व जगदेव आदि वीर गाथाओं गायन किया जाता है। उक्त कलाकारों द्वारा Fast Beat के सिरमौरी गीतों पर पारम्परिक नृत्य भी किया जाता है। सदियों से क्षेत्र में केवल Diwali तथा बूढ़ी दिवाली के दौरान ही बुड़ेछू नृत्य होता है तथा इसे बूढ़ा अथवा बुड़ियाचू नृत्य भी कहा जाता है। स्थानीय लोग बुड़ेछू दल के सदस्यों को नकद बक्शीश के अलावा घी के साथ खाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजन भी परोसते हैं तथा इस परम्परा को ठिल्ला कहा जाता है। बहरहाल क्षेत्र में सदियों से इस तरह दीपावली मनाने की परंपरा कायम है। एक माह बाद आने वाली अमावस्या से Greater Sirmaur के कईं गांव में सप्ताह भर चलने वाली बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है तथा कुछ गांवों में इसे मशराली के नाम से भी मनाया जाता है। ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार में दीपावली के अलावा लोहड़ी, गूगा नवमी, ऋषि पंचमी व वैशाखी आदि त्यौहार भी शेष हिंदोस्तान से अलग अंदाज मे मनाए जाते हैं। इलाके की ऐसी ही परम्पराओं व विषम भौगोलिक परिस्थितियों आदि को आधार मानकर 4 अगस्त 2023 को भारत सरकार द्वारा Giripaar के हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति दर्जा दिया गया है।

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