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अब बीमार व्यक्ति को मर्म चिकित्सा से दर्द व बीमारी का इलाज किया जा रहा हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा से रोग को जड़ से समाप्त किया जा सकता हैं। आयुर्वेदिक दवाओं से कोई साइड इफ़ेक्ट भी नही होता हैं।
उप मंडलीय आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी वरिष्ठ डॉ. यादवेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि मर्म चिकित्सा वास्तव में अपने अंदर की शक्ति को पहचानने जैसा है। शरीर की स्वचिकित्सा शक्ति (सेल्फ हीलिंग पॉवर) ही मर्म चिकित्सा है। मर्म चिकित्सा से सबसे पहले शांति व आत्म नियंत्रण आता है। और सुख का अहसास होता है। शनिवार को आयुर्वेदिक चिकित्सालय पांवटा द्वारा एक दिवसीय निःशुल्क शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में 72 रोगियों का उपचार किया गया।
न्यूज पोर्टेलस से बातचीत करते हुए डॉ. यादवेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि शरीर में 107 मर्म स्थान हैं। जिनसे मेडिकल के छात्रों को उपचार व सर्जरी के दौरान बचाने की सीख दी जाती है। 37 बिंदु शरीर में गले से ऊपर के हिस्से में होते हैं। और उनसे लापरवाही भरी कोई छेड़छाड़ जानलेवा भी साबित हो सकती है। इसलिए उनके साथ केवल चिकित्सकों को ही उपचार की अनुमति है। लेकिन, अन्य बिंदुओं की जानकारी होने पर आम लोग भी अपने या परिजनों, मित्रों या किसी भी रोगी का इलाज कर सकते हैं।
उप मंडलीय आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि शरीर के हर हिस्से व अंग के लिए शरीर में अलग-अलग हिस्सों में मर्म स्थान नियत हैं। किसी भी अंग में होने वाली परेशानी के लिए उससे संबंधित मर्म स्थान को 0.8 सैकेंड की दर से बार-बार दबाकर स्टिमुलेट करने से फौरन राहत मिलती है। इस शिविर में पंहुंचे पांवटा क्षेत्र के बलवीर सिंह ठाकुर , कमला नेगी, प्रोमिला शर्मा, सुषमा, जितेंद्र सिंह , बलवंत सिंह, विनोद कुमार , कुलदीप, किरण कुमार व जीपी दिनकर ने शिविर में गर्दन, पीठ, कमर व पैर दर्द में तो मर्म चिकित्सा जांच करवाई।
मनोविकार विज्ञान आधुनिक युग का एक नवीन विज्ञान है। 20वीं सदी में ही इस विज्ञान के विभिन्न अंगों में महत्व की खोजें हुई हैं। 19वीं शताब्दी तक विभिन्न प्रकार के मनोविकार ऐसे रोग माने जाते थे जिनका साधारण चिकित्सक से कोई संबंध नहीं था। जटिल मनोविकार की अवस्था में रोगी को मानसिक चिकित्सालयों में रख दिया जाता था, ताकि वह समाज के दूसरे लोगों का कोई नुकसान न कर सके। इन चिकित्सालयों में भी उसका कोई विशेष उपचार नहीं होता था। चिकित्सकों को वास्तव में उसकी चिकित्सा के विषय में स्पष्ट ज्ञान ही न था कि चिकित्सा कैसे की जाय।
चिकित्सा शिविर में सेवा देने वाले वाले डॉ. प्रभाकर मिश्रा, ड़ॉ. चेतना अग्रवाल व डॉ. कुलदीप शर्मा ने कहा कि अब परिस्थिति बदल गई है। आयुर्वेदिक पदत्ति काफी महत्वपूर्ण है। जो कि जड़ से रोग का जड़ से समाप्त कर देती है। इसका समुचित ज्ञान होना जरूरी है। उपचार केवल किसी कुशल चिकित्सक से करवाये।
इस अवसर पर डॉ प्रभाकर मिश्रा, ड़ॉ चेतना अग्रवाल, ड़ॉ कुलदीप शर्मा, आयुर्वेदिक अस्पताल के सहयोगी प्रतिभा शर्मा, रीता देवी, कमलप्रीत, रामकिशन व राजेश ठाकुर मौजूद रहे।
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