News portals-सबकी खबर (शिलाई)
जिला सिरमौर की विकास खण्ड शिलाई में भ्रष्टाचार चरम पर है, यहां विकास कार्यों के नाम पर कर्मचारियों व जनप्रतिनिधयों की मिली भगत से करोड़ो रूपये डकारे जा रहे है। ग्रामीणो की शिकायत के बाद विकासात्मक कार्यों पर सरकारी धन का दुरुपयोग सरेआम चल रहा है। खण्ड स्तरीय अधिकारियों से लेकर जिलास्तर के अधिकारी भ्रष्ट कर्मचारियों व संबंधित जनप्रतिनिधियों का बचाव करते नजर आ रहे है। जिससे जहां भ्रष्टतंत्र में लिप्त लोगो के हौसले बुलंद है। वहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा।
मामला विकासखण्ड की ग्राम पंचायत हलाह का सामने आया है। जहाँ जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लगभग 24 लाख रुपये का घोटाला पंचायत प्रतिनिधियों व कर्मचारियों का उजागर किया है। जिसे लगभग एक महीने पूर्व खण्ड कार्यालय से उचित कार्यवाही के लिए जिला अधिकारियों को भेजा गया है। लेकिन उच्च अधिकारियों ने मामले में अधिक रुचि नही न दिखाकर घोटाले की जांच रिपोर्ट को दफ्तरी फाइलों के नीचे दबा दिया है। इसलिए जिलाअधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगना लाजमी लाजमी है। विभागीय जांच कमेटी के अनुसार ग्राम पंचायत हलाह के अंतर्गत मात्र आठ विकासात्मक कार्यों में लगभग 82 लाख रुपये खर्च किये जा रहे है। जिनमे से 40 लाख रुपये सरकारी खजाने से कागजी सफाई के साथ निगल दिए गए है। जांच कमेटी ने जनप्रतिनिधियों और कमचारियों को बचाने के चक्कर में 16 लाख रुपए मौका पर विकास कार्यों सहित सामग्री में दर्शाए है। जबकि लगभग 24 लाख रुपये का घोटाला उजागर किया है। विभिन्न विकासात्मक कार्यों की हुई जांच में पाया गया कि मनरेगा के अंतर्गत ठेकेदारी प्रथा चरम पर है। लाखों रुपये सरकारी धन की निकासी होने के बाबजूद न मौका पर मटेरिल पहुँचा है। न ही कार्य शुरू गए है। कई कार्य ऐसे है जिनमे संबंधित जमीन मालिकों से अनापति प्रमाण पत्र नही लिए गए है। और लाखों रुपये सरकारी खजाने से निकाल दिए गए है। अधिकांश कार्य 16 महीने पहले शुरू किए गए है। और सैकड़ो बैग सीमेंट सरकारी गोदाम से निकाले गए है। जिनका मौका पर कोई रिकॉड नही पाया गया है। विकासात्मक कार्यों में मस्ट्रोल ऐसे लोगों के लगाए गए है। जो वर्तमान प्रधान व पूर्व प्रधान के परिवार से संबंधित है। कई कार्यों में मस्टरोल लगे ही नही और मेट्रियल पेमेंट निकाल दी गई है। कागजी फाइलों के मुताबिकस्कीमो में लगने वाले मेट्रियल बील क्रेशर के दिखाए गए है। जबकि मौका पर मिली सामग्री वन विभाग के एरिया से रात्री को निकाल कर लाई गई है।
दरअसल सरकारी खजाने से निकाले गए 40 लाख रुपए सीधे जनप्रतिनियों और संबंधित कर्मचारियों की जेब में गए है। मौका पर इतनी बड़ी धन राशि से कोई भी कार्य नहीं किया गया है। आश्चर्य इस से बात हो रहा है कि यह पहला ऐसा मामला है जिसमे जांच रिपोर्ट पर सीधा स्पष्ट किया गया है कि जनप्रतिनिधियों और कर्मचारियों ने सरकारी धन का दुरुपयोग किया है। विकास्तामक कार्यों के नाम पर सरकारी पैसों से अपनी अपनी पोटलियां भरी गई है। और सरकारी फाइलों में केवल कागजी पेट भरे गए है। बावजूद उसके एक माह बीतने के बाद भी जिला अधिकारी कार्यवाही करने में गुरेज करते नजर आ रहे है। जांच पूर्ण होने के बाद जिला अधिकारी केवल जांच पर जांच करने का अलाप जपते नजर आ रहे है। इसलिए यहां जिला अधिकारियों की कार्यप्रणाली, भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने वाली नही, बल्कि शिकायतकर्ताओं की शिकायत को जूठी साबित करने में लगी हुई नजर आ रही है। ग्रामीणों की माने तो खण्ड कार्यालय से लेकर जिला कार्यालय तक सबको शिकायते दी जा चुकी है। जांच रिपोर्ट शिकायत के साथ लगाई गई है। सिरमौर पुलिस को भी मामला दिया गया है। लेकिन छोटे से लेकर बड़े अधिकारियों तक सब संबंधित जनप्रतिनियो की कठपुतली नजर आ रहे है। कार्यवाही करने की जगह पंचायत के अंदर तनाव वाला माहोल पैदा कर रहे है। जांच में घोटाला सामने आने के बाद पंचायत को जेसीबी से मनरेगा कार्यों को पूर्ण करवाने के मौखिक आदेश जारी किए गए है। अधिकारियों द्वारा भ्रष्ट लोगों पर अधिक भ्रष्टाचार करवाने के लिए बल दिया जा रहा है। जब शिकायतकर्ता जांच से संतुष्ट है तो अधिकारियों को मौका पर वेतरतीव कार्यवाही करवाने की जगह भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करनी चाहिए।
ग्रामीणों ने बताया कि पहले कमचारियों में सचिव की चार प्रतिशत, जीआरएस दो प्रतिशत, तकनीकी सहायक और कनिष्ठ अभियता चार प्रतिशत, सहायक अभियंता दो प्रतिशत, अधिशाषी अभियंता दो प्रतिशत, बैंडर की जीएस्टी के अतिरिक्त दो प्रतिशत कमीशन फिक्स है। इनके बाद पंचायत प्रतिनिधि 5 प्रतिशत अपना काटता है। और जो पैसा बच गया उससे पेटी पर कार्य करवाया जाएगा। इस तरह पंचायत हलाह के अंदर सरकारी खजाने से निकाले गए धन का बटवारा किया गया है। और उच्च अधिकारी इन्हीं भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए मौका पर जेसीबी से कार्य करवा रहे है। इसलिए प्रदेश सरकार से अपील की जाती है कि यदि जिला अधिकारी मामले में जल्द कार्यवाही नही करते है तो सभी अधिकारियों की जांच करवाएं और जिला से लेकर खण्ड कार्यालय तक भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही अम्ल में लाई जाए। अन्यथा ग्रामीण जल्द सरकार के खिलाफ न्यायालय में जाने वाले है।
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