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दिव्यांग होने पर दूसरों का सहारा ढूंढते है। लेकिन दिव्यांगता को ही ढाल बनाकर अपने आप को इतना सक्षम बनाना कि दूसरों को सहारा देना गर्व की बात है। ऐसा ही एक कारनामा जिला हमीरपुर से 9 किलोमीटर दूर कोट गांव के सेवानिवृत सूबेदार मेजर मिलाप चंद चौहान ने किया है। तू और भी इम्तिहान लें जिंदगी हमारे हौसलों की स्याही अब भी बाकी है। यह शब्द इस रिटायर्ड फौजी ने सच साबित कर दिखाए है। रिटायर्ड मेजर ने अपनी कमजोर को ताकत बनाया और दूसरे लोंगों के लिए मिसाल पेश की। स्कूटी चलाना मिलाप चंद चौहान के वाएं हाथ का खेल है। क्योंकि बाजू घास की मशीन में आधी कट गई है।
रोजमर्रा के काम स्कूटी से निपटाते है। यहां तक की पशुओं के लिए चारा भी स्कूटी पर ही ढोते है। यहां तक की दूर का सफर भी वे स्कूटी पर ही करते है। सेवानिवृत होने के तीन साल बाद ही उनकी एक हादसे में हाथ कट गया। बाजू कटने के तीन साल बाद उनके बेटे ने उनके लिए स्कूटी लाकर दी। मिलाप चंद यही सोचते रहे कि स्कूटी कैसे चलाई जाए। क्योंकि स्कूटी की ब्रेक और एक्सीलेटर हाथों में ही होता है। इन्होंने स्कूटी को नंगल ले जाकर इसमें जुगाड़ से नया रूप दिया गया और इसकी रेस और ब्रेक पैरों में लगवा दी। अब एक हाथ से भी स्कूटी चलना मुश्किल था इसलिए कटी हुई बाजू में रस्सी बांधी और स्कूटी चलाना शुरू किया।
शुरू में तो कई बार स्कूटी से गिरे भी लेकिन फिर भी हि मत नहीं हारी और आज सभी जगह अपनी स्कूटी पर सफर करते है। रिटायर्ड मेजर कहते है कि उन्हें अपने काम के लिए किसी दूसरे का सहारा नहीं लेना पड़ता। उन्होंने ऐसे लोगों को संदेश दिया कि जो हादसे में अपने अंग गंवा देते है। उन्होंने कहा कि हि मत हारने से कुछ नहीं होगा। कोशिश करिए कामयाबी जरूर मिलेगी।
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