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अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में प्राचीनतम समय से आने वाले जो देवी-देवता इस बार नहीं आए हैं, उनमें नाराजगी है। कारकून और हरियान भी मायूस हैं, क्योंकि यहां के लोग देवी-देवताओं के साथ जुड़े हैं। कोरोना संकट ने ‘अठारह करडू की सौह’ को उत्सव में आने नहीं दिया, लेकिन यदि उनके श्रद्धासुमन और दुपट्टा भगवान रघुनाथ जी के दर में चढ़ते हैं, तो उनकी हाजिरी भगवान रघुनाथ जी के रजिस्टर में जरूर लगेगी। देवी-देवताओं के कारकूनों के लिए कोरोना संकट के बीच यह खुशखबरी है कि उनके आराध्य देवी-देतवताओं की हाजिरी भगवान रघुनाथ जी के रजिस्टर में फूल आने पर लगेगी, जिससे देवी-देवताओं की परंपरा भी कायम रहेगी और कोविड के जो नियम और दिशा-निर्देश जारी हुए हैं, उनका भी पालन होगा। परंपरानुसार रजिस्टर को मेंटेन रखने की बात का खुलासा भगवान रघुनाथ जी के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने किया है। यह फैसला भी शायद देव संस्कृति और देव परंपरा के लिए काफी सही माना जाएगा।
इस बार कोरोना संकट के बीच अठारह करडू की सौह में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव सूक्ष्म तरीके से मनाया जा रहा है, जिसका आगाज रविवार को हुआ है। करीब 11-12 देवी-देवताओं ने भी रथ में विराजमान होकर उत्सव में भाग लिया है, लेकिन अधिकतर देवी-देवता इस बार विराजमान नहीं हो पाए हैं। पिछले वर्ष अंतरराष्ट्रीय दशहरा कमेटी के रजिस्टर के साथ भगवान रघुनाथ जी के रजिस्टर में 278 देवी-देवताओं की उपास्थिति दर्ज हुई थी, लेकिन इस बार कोरोना संकट के चलते प्रशासन के रजिस्टर में अधिकृत रूप में सात और अनाधिकृत रूप से चार-पांच देवी-देवताओं की हाजिरी लग सकी है, लेकिन भगवान रघुनाथ जी के रजिस्टर में दशहरा उत्सव में अधिकृत और अनाधिकृत रूप में विराजमान हुए सभी देवी-देवताओं की हाजिरी तो लगेगी, वहीं, उन देवी-देवताओं की हाजिरी भी रघुनाथ जी के रजिस्टर में लगेगी, जिनके श्रद्धासुमन और देव दुपट्टा पहुंचेगा। भगवान रघुनाथ जी के रजिस्टर का कॉलम देवी-देवताओं के श्रद्धासुमन आने पर क्रमानुसार मेंटेन होता रहेगा।
भगवान रघुनाथ से मिलेगी रस्म
भगवान रघुनाथ जी के मुख्य छड़ीबरदार महश्ेवर सिंह ने कहा कि हाजिरी के लिए बाकायदा रजिस्टर भरेंगे। जिन देवी-देवताओं के श्रद्धासमुमन और दुपट्टा आएगा, उन्हें भगवान रघुनाथ जी की तरफ से पारंपरिक रूप में दी जाने वाली रस्म भी दी जाएगी। केसर की पुडि़यां और एक बगा दिया जाएगा। यह मुहल्ले वाले दिन होगा। देवी माताओं को माता की तरफ से और देवताओं को भगवान रघुनाथ की तरफ से केसर की पुडि़यां और बगा परंपरानुसार दिया जाएगा। वहीं, श्रद्धासुमन और दुपट्टा लेकर आने वाले देव कारकूनों के बाकायदा दस्तखत किए जाएंग। देवी-देवताओं के कारकूनों से आह्वान है कि वे इस कोरोना संकट में नियमों का उल्लंघन न करें, लेकिन इस समय संयम रखा जाए, तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दूसरे दिन भगवान नरसिंह की जलेब यात्रा पारंपरिक रूप में निकली। इस परिक्रमा का अंदाज ढोल-नगाड़ों, नरसिंगों, करनाल और शहनाई की धुनों के साथ पिछले वर्षों की भांति शाही लग रहा था, लेकिन कोरोना संकट ने इस बार ऐसे इतिहास रच डाला कि नरसिंह भगवान की पहली जलेब यात्रा ही मात्र एक-एक देवता के साथ निकली। कहां यह जलेब पांच से सात देवी-देवताओं के साथ निकलती थी। इस बार पहली जलेब में एकमात्र पीज के जमलू देवता शामिल रहे। जहां नरसिंह की पालकी के दोनों तरफ देवी-देवता शामिल रहते थे, वहीं इस बार एक तरफ ही देवता जमलू विराजमान रहे। बता दें कि सोमवार करीब चार बजे राजा की चानणी से निकली जलेब के माध्यम से नरसिंह भगवान ने ढालपुर में रक्षा सूत्र बांधा गया।
मान्यता है कि सुख-शांति के लिए यह जलेब यात्रा निकली। करीब साढ़े चार बजे निकाली गई, जलेब राजा की चानणी से शुरू हुई। बता दें कि पालकी के एक तरफ देवता जमलू का रथ चला, तो आगे-आगे नरसिंह भगवान की घोड़ी और वाद्य यंत्र की धुनें गूंजती रही। राजा की चानणी, अस्पताल सड़क, कालेज चौक, कलाकेंद्र के पीछे होकर जलेब अंततः राजा की चानणी के पास ही जलेब संपन्न हुई। अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के मुख्य आकर्षण में भव्य जलेब यात्रा भी है। मुहल्ले उत्सव होने तक प्रतिदिन कुल्लू दशहरा में जलेब निकाली जाएगी। बता दें कि ढोल-नगाड़ों की थाप ने जलेब यात्रा में रौनक बढ़ाई। बीच-बीच में लोग नाचे भी। भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भी पालकी में सवार हुए। नरसिंह भगवान ने जलेब के माध्यम से मैदान के चारों तरफ परिक्रमा की। वहीं, अगले दिन जलेब यात्रा जारी रहेगी।
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