News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)
सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए जाने रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं त्यौहार शेष हिंदुस्तान से अलग अंदाज में मनाए जाते हैं, मगर यहां मनाई जाने वाली दूज की बात ही अलग है। गिरिपार में शेष भारत में मनाई जाने वाली भैया दूज की बजाए सास-दामाद दूज मनाई जाती है। इस दिन दामाद अपनी सासों को गिफ्ट अथवा उपहार देते हैं तथा उनका आशीर्वाद लेते हैं।
सोमवार को गिरिपार के अंतर्गत आने वाले विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की करीब 130 पंचायतों केे अधिकतर गांव में सास-दामाद दूज मनाई गई। गिरिपार के साथ लगते सिरमौर के सैनधार इलाके में भी यह परम्परा सदियों से कायम है। क्षेत्र में प्रचलित परंपरा के मुताबिक इस दिन दामाद अपनी सास को सौ अखरोट, गुड़, चावल, मिठाई व घी के अलावा अन्य कोई पसंदीदा चीज भी उपहार में दे सकते हैं। क्षेत्र में सास-दामाद दूज की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, घर अथवा प्रदेश से बाहर नौकरी करने वाले फौजी व अन्य दामाद हर हाल में दूज पर छुट्टी लेकर ससुराल पहुंचने की कोशिश करते हैं।
किसी दामाद के इस दिन न पहुंचने की सूरत में वह 10 दिन बाद आने वाले ज्ञास पर्व तक सास को उपहार दे सकता है, जिसे स्थानीय बोली में सासु-भेंट कहा जाता है। संगड़ाह में मिठाइयों की दुकाने चलाने वालों के अनुसार सोमवार को बारिश के बावजूद जमकर खरीदारी हुई। नवविवाहिता जोड़ों के अलावा वर्षों पहले शादी कर चुके दामाद भी इस दिन अपनी सास को गिफ्ट देते हैं, हालांकि सास चाहें तो अपने दामाद को हर साल इस परंपरा को न निभाने की छूट दे सकती है।
गिरिपार में दूज के अलावा लोहड़ी के दौरान मनाए जाने वाले माघी त्यौहार में जहां एक साथ 40 हजार के करीब बकरे कटते हैं, वहीं ऋषि पंचमी पर महासू भक्त आग से खेलकर इसे अपने अंदाज में मनाते हैं। गुगा नवमी पर श्रद्धालुओं को स्वयं से लोहे की जंजीरों से पीटते हैं तथा दीपावली के एक माह बाद बूढ़ी दिवाली भी देश व दुनिया के हिंदुओं से अलग अंदाज में मनाई जाती है। इन्हीं परंपराओं को आधार मानकर क्षेत्रवासी गिरिपार को जनजातीय दर्जे का मुद्दा पिछले चार दशकों प्रदेश व केंद्र सरकार के समक्ष उठा रहे हैं। बहरहाल क्षेत्र में सास-दामाद दूज पारम्परिक अंदाज में मनाई गई।
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