Breaking News :

मौसम विभाग का पूर्वानुमान,18 से करवट लेगा अंबर

हमारी सरकार मजबूत, खुद संशय में कांग्रेस : बिंदल

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद 7.85 करोड़ रुपये की जब्ती

16 दिन बाद उत्तराखंड के त्यूणी के पास मिली लापता जागर सिंह की Deadbody

कांग्रेस को हार का डर, नहीं कर रहे निर्दलियों इस्तीफे मंजूर : हंस राज

राज्यपाल ने डॉ. किरण चड्ढा द्वारा लिखित ‘डलहौजी थू्र माई आइज’ पुस्तक का विमोचन किया

सिरमौर जिला में स्वीप गतिविधियां पकड़ने लगी हैं जोर

प्रदेश में निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण निवार्चन के लिए तैयारियां पूर्ण: प्रबोध सक्सेना

डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं गवर्नेंस ने किया ओएनडीसी पर क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन

इंदू वर्मा ने दल बल के साथ ज्वाइन की भाजपा, बिंदल ने पहनाया पटका

November 16, 2024

बरसात के दौरान लोगों को 48 घंटे पहले पता चल जाएगा कि कहां बादल फटने वाला है

News portals-सबकी खबर (शिमला )

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बरसात के दौरान लोगों को 48 घंटे पहले पता चल जाएगा कि कहां बादल फटने वाला है। लगातार हो रहे नुकसान से बचने के लिए जीबी पंच राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान ऐसा यंत्र बनाने की दिशा में काम कर रहा है। संस्थान का दावा है कि दो साल में यंत्र बना लेंगे, जिससे बादल फटने की घटनाओं का 48 घंटे पहले पता चल जाएगा। पिछले चार दशकों से कुल्लू क्षेत्र में बारिश की मात्रा कम हुई है। हालांकि, कई बार बारिश अधिक होने से नुकसान भी अधिक हो रहा है। जिले में बादल फटने और भूस्खलन जैसी घटनाएं भी बढ़ रही हैं।


कुल्लू में वैज्ञानिकों की ओर से दो साल में एक ऐसा यंत्र बनाया जाएगा। जिससे हर गांव का एकदम सही तापमान और बारिश का पूर्वानुमान लगाया जा सके। इसके अंतर्गत बादल फटने जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान भी लग पाएगा। -राकेश कुमार, वैज्ञानिक, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, मौहल।


सीएसआईआर के सुपर कंप्यूटर की ली जाएगी मदद
प्रोजेक्ट पर जीबी पंत संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. रेणुलता, सीएसईआर से डॉ. केसी गौड़ा, डॉ. जीएन महापात्रा, शोधार्थी शायन्ता घोष, रजत ठाकुर काम कर रहे हैं। इसमें सीएसईआर बंगलूरू के आधुनिक तकनीक वाले सुपर कंप्यूटर की भी मदद ली जाएगी।

 

Read Previous

जनता ने चाहा, तो चुनाव लड़ेंगे भी और चुनाव जीतेंगे भी – प्रेम कुमार धूमल

Read Next

NH-707 पर हुई लैंडस्लाइडिंग में भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अध्ययन में पाया कि पहले चुना पत्थर के लिए माइनिंग होती रही जिससे क्षेत्र की भूमि को क्षति पहुंची

error: Content is protected !!