News portals-सबकी खबर(नौहराधार)
हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा पाने के लिए हाटी समुदाय कई वर्षों से लड़ रहे हैं, मगर सरकार के रुख से कई दशकों से यह मांग लटकी पड़ी है। इस विषय में हाटी समुदाय का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में मिल चुका है। केंद्रीय हाटी समिति के अध्यक्ष डा. अमी चंद कमल ने पीएमओ कार्यालय को सूचना के अधिकार के तहत इस मामले में जानकारी मांगी थी कि हाटी समुदाय को लेकर सरकार की क्या कार्रवाई हुई है।
इसके जवाब में जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने दिसंबर, 2016 के तत्कालीन सांसद वीरेंद्र कश्यप के पत्र को जनजातीय मंत्रालय को उचित कार्रवाई के लिए भेज दिया गया है। हैरानी का विषय यह है कि करीब चार वर्षों बाद भी कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। केंद्रीय हाटी समिति अध्यक्ष डा. अमी चंद कमल ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा गृह मंत्रालय, जनजातीय मंत्रालय व आरजीआई से भी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी है। हालांकि पीएमओ कार्यालय से जानकारी मिल चुकी है तथा अन्य मंत्रालयों से भी जल्द जानकारी मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हाटी समिति ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजातीय आयोग के अध्यक्ष को भी पत्र लिखा था।
इसमें कहा गया कि संवैधानिक संस्था राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजातीय आयोग ने चार दशक पूर्व हाटी समुदाय को जनजाति व गिरिपार को जनजातीय क्षेत्र घोषित किए जाने की सिफारिश की थी, मगर इसे भी नजरअंदाज किया गया। अमी चंद कमल ने बताया कि गिरिपार के हाटी समुदाय की जायज व न्यायसंगत मांग को आपत्तिजनक लगाकर लटकाया जा रहा है।
हाटी समुदाय इस लड़ाई को नहीं छोड़ेंगे। सनद रहे कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर दिल्ली में भारत सरकार के सामने इस मुद्दे को हल करने का आग्रह कर चुके हैं, मगर केंद्र में सरकार के अधिकारी इस मामले को लटकाने का कार्य कर रहे हैं। इस पिछड़े क्षेत्र को पिछले 49 सालों से इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों ने सिर्फ सियासी रोटियां सेंकने का ही काम किया। हाटी अधिकार मंच व हाटी के वालंटियर्स का कहना है कि 2014 में हाटी भाइयों को जनजातीय दर्जा दिलवाने के मुद्दे पर ठोस वादों के बावजूद इस अहम मुद्दे को लटका कर हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। बहरहाल उत्तराखंड के जोंसार बाबर की तर्ज पर हाटी समुदाय को भी जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना चाहिए था। इन दोनों जगह समान भौगोलिक परिस्थितियां और सामाजिक रीति-रिवाज एक जैसे हैं। गौरतलब है कि जोंसार बाबर को 1967 में जनजातीय क्षेत्र घोषित किया गया था।
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