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प्रदेश की नवगठित सुखविंद्र सिंह सुक्खू सरकार के समक्ष बागवानों और कर्मचारियों के मुद्दे सबसे बड़ी चुनौती होंगे। इस समय प्रदेश के करीब ढाई लाख कर्मचारियों की निगाहें पुरानी पेंशन बहाली और एरियर भुगतान पर टिकी हैं। इन मुद्दों को सुलझाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं है। बागवान कई तरह की राहत की उम्मीद नई सरकार से रखे हुए हैं। दूसरी ओर, माली हालत की बात करें तो हिमाचल मौजूदा समय में 70 हजार करोड़ के कर्ज के बोझ में दबा है। पूर्व भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले बागवानों की उपेक्षा और पुरानी पेंशन बहाली मुद्दे पर चुप्पी साधी थी।कांग्रेस इन दोनों वर्गों के मुद्दों को चुनाव में भुनाने में काफी हद तक सफल रही है। कांग्रेस हाईकमान ने सुखविंद्र सिंह सुक्खू के हाथों में प्रदेश सरकार की कमान सौंपी है। अब सवाल यह है कि गंभीर वित्तीय संकट के बीच सीधे आर्थिक तौर पर जड़े मुद्दों को सुलझाने में सुक्खू सरकार किस तरह और कहां तक कामयाब होगी| सत्ता में रही जयराम सरकार को हर माह बढ़ रहे कर्जे को लेकर कांग्रेस पिछले पांच साल से कोसती रही है। कांग्रेस की जीत के बाद शिमला में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पूरी उम्मीद जताई है कि प्रदेश मंत्रिमंडल की पहली बैठक में पुरानी पेंशन बहाल कर दी जाएगी। एनपीएस के कर्मचारी नए मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। दूसरी ओर, प्रदेश के लाखों बागवान भी कीटनाशकों, फफूंदनाशकों दवाओं और खादों पर उपदान को लेकर उम्मीद पाले हैं।बागवानों पर पैकिंग सामग्री पर 18 फीसदी जीएसटी की मार भी पड़ रही है। बिचौलियों की मार से सेब बागवान पहले से परेशान हैं। कमजोर विपणन व्यवस्था से फसलों को मंडियों में अच्छे दाम नहीं मिल रहे। यह मुददे चुनाव में भी गरमाए रहे और बागवानों की तत्कालीन जयराम सरकार से नाराजगी का लाभ भी कांग्रेस को मिला है। ऐसे में नई सरकार के लिए किसानों और बागवानों को राहत की डोज देना भी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
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