News portals (नई दिल्ली )
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर लोकसभा में सोमवार को जमकर हंगामा हुआ। होम मिनिस्टर अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश करते हुए विपक्ष के ऐतराजों का जवाब देते हुए कहा कि यदि आप लोग इसे गलत साबित कर देंगे, तो हम बिल वापस ले लेंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हम भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर चिंतित हैं, उसी तरह पड़ोसी मुल्कों से आने वाले माइनॉरिटी समुदाय के लोगों के लिए भी हम प्रतिबद्ध हैं।
उधर, इस बिल का कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने जमकर विरोध किया। वहीं, शिवसेना ने भी इस बिल को लेकर सवाल उठाए हैं, जबकि अकसर प्रखर राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों पर सवाल उठाने वाली जेडीयू समेत कई दलों ने खुलकर समर्थन किया है। जेडीयू के अलावा बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और एलजेपी ने भी बिल का समर्थन किया है। उधर, कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि बिल का आधार धार्मिक होने के चलते यह संविधान की भावना के खिलाफ है। इसलिए इस बिल में सुधार किया जाना चाहिए। आपने श्रीलंका, चीन और अन्य किसी देश के लोगों को इस बिल में शामिल नहीं किया। आपने सिर्फ उन देशों को ही शामिल किया, जो मुस्लिम बहुल हैं। रवींद्रनाथ टैगोर का जिक्र करते हुए चौधरी ने कहा कि यह देश मानवता का महासागर है।
शिवसेना का पक्ष रखते हुए सांसद विनायक राउत ने कहा कि इन तीन देशों से अब तक कितने लोग आए हैं और कितने लोगों की पहचान की गई है। यदि सारे लोगों को नागरिकता दी गई, तो देश की आबादी बहुत बढ़ जाएगी। इन लोगों के आने से भारत पर कितना बोझ बढ़ेगा, इसका जवाब भी होम मिनिस्टर को देना चाहिए। उधर, जवाब में अमित शाह ने कहा कि भारत के अल्पसंख्यकों की हम चिंता करते हैं तो क्या बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पीडि़त अल्पसंख्यकों की चिंता नहीं होनी चाहिए? हम जो बिल लाए हैं, वह हमारे घोषणा पत्र के मुताबिक है। अमित शाह ने कहा कि लाखों करोड़ों लोग वहां से धकेल दिए गए। कोई भी व्यक्ति अपना देश यहां तक कि गांव भी यूं ही नहीं छोड़ता। कितने अपमानित हुए होंगे, तब जाकर वे यहां आए। इतने सालों से रहने वाले लोगों को यहां न शिक्षा, न रोजगार, न नागरिकता और न ही अन्य कोई सुविधा है। इस बिल से लाखों लोगों को नारकीय यातना से मुक्त मिल जाएगी। अमित शाह ने कहा कि यह बिल किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता है और धर्म के आधार पर उत्पीड़न झेलने वाले लोगों को शरण देता है। इसके कुछ प्रावधानों पर विपक्ष के ऐतराजों को लेकर अमित शाह ने कहा कि धर्म और पंथ के आधार पर किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए। मगर किसी भी सरकार का यह तो कर्तव्य है कि वह देश की सीमाओं की रक्षा करे। क्या यह देश सभी के लिए खुला छोड़ा जा सकता है। ऐसा कौन सा देश है, जिसने बाहरी लोगों को नागरिकता देने के लिए कानून नहीं बनाए। गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता को लेकर इस तरह के कानून पहले भी बने हैं। उन्होंने कहा कि 1947 में लाखों लोगों ने भारत की शरण ली थी और हमने उन्हें नागरिकता देते हुए तमाम अधिकार दिए। ऐसे में ही लोगों में से मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग भी हुए, जो प्रधानमंत्री से लेकर उपप्रधानमंत्री तक बने। इसके बाद 1971 में भी ऐसे ही प्रावधान लागू किए थे, फिर अब इस तरह के ही बिल का विरोध क्यों किया जा रहा है। 1971 में जब इंदिरा गांधी ने दखल दिया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। उस दौरान हमने लाखों लोगों को जगह दी। युगांडा, श्रीलंका से आए लोगों को भी हमने शरण दी। फिर अब इस पर क्या आपत्ति है।
कितना बदलाव
नया बिलः छह धर्मों के लोगों को मिलेगी नागरिकता, मुस्लिम बाहर, छह साल भारत में रहने के बाद बनेंगे नागरिक
1955 का बिलः मुस्लिम समेत सभी धर्म के शरणार्थी थे शामिल, 11 साल भारत में रहने के बाद नागरिकता
ऐसा है प्रस्ताव
नागरिकता संशोधन विधेयक में नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन का प्रस्ताव है। इस संशोधन के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को नागरिकता मिलेगी, जो पलायन करके भारत आए। इनमें हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई और पारसी लोग शामिल हैं। नागरिकता संशोधन बिल किसी एक राज्य नहीं, बल्कि पूरे देश में शरणार्थियों पर लागू होगा।
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