बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी नहीं दे पाई घराट के आटे के स्वाद का विकल्प
News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)
हिमाचल के विभिन्न विकसित क्षेत्रों में बेशक बरसों पहले पानी से चलने वाले पारंपरिक घराट लुप्त हो चुके हों, मगर उपमंडल संगड़ाह के दूरदराज के गांव सींऊ व पालर आदि में सदियों बाद भी घराटों का वजूद कायम है। बिना सरकारी मदद अथवा ऋण के लगाए गए उक्त घराट कुछ परिवारों के लिए स्वरोजगार का साधन भी बने हुए हैं। नदी-नालों के साथ बसे उक्त गांव में हालांकि बिजली की चक्कियां होने के साथ-साथ आसपास के कस्बों से ब्रांडेड कंपनियों के आटे की सप्लाई भी होती है|
मगर अधिकतर ग्रामीण अपने अनाज घराट में ही पिसवाना पसंद करते हैं। न केवल इन्हीं गांव के लोग बल्कि अन्य गांवों, कस्बों तथा शहरी इलाकों में रहने वाले कुछ साधन संपन्न लोग भी समय मिलने पर इन छोटे-छोटे घराटों से अनाज पिसवा कर घर ले जाते हैं। गांव सीऊं के घराट मालिक रघुवीर सिंह ने बताया कि, कईं पीढ़ियों से घराट उनके परिवार की आय का मुख्य जरिया बना हुआ है।
बातचीत में रघुवीर सिंह ने बताया कि, आजादी के बाद 1950 में उनके दादाजी को घराट कि पट्टा मिला था तथा अब तक तहसील कार्यालय संगड़ाह अथवा अथवा नंबरदार को इसका राजस्व जमा करवाते हैं। बहरहाल क्षेत्र में घराट का वजूद कायम है।
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