न्यूज़ पोर्टल्स : सबकी खबर (संगड़ाह)
जिला सिरमौर के पहाड़ों का गृष्मकालीन प्रवास पूरा होने के बाद उक्त घुमंतू समुदाय अपने मवेशियों के साथ अब मैदानी इलाकों के अगले छह माह के प्रवास पर निकल चुका| गिरिपार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई के पहाड़ी जंगलों में सदियों से अप्रैल व मई महीने में उक्त समुदाय के लोग अपनी भैंस, गाय, बकरी व बैल आदि मवेशियों के साथ गर्मियां बिताने पहुंचते हैं तथा इन दिनों लौटने लगते हैं। अपने मवेशियों के साथ पैदल गंतव्य तक पहुंचने में इन्हे करीब एक माह का समय लग जाता है। इनके मवेशियों के सड़क से निकलने के दौरान वाहन चालकों को कईं बार जाम की समस्या से जूझना पड़ता है तथा कईं चालकों को इन्हे बार-बार कोसते भी सुना जाता है। गुज्जरों की मानें तो वह तब से इन क्षेत्रों में घूम रहे हैं जब सड़के थी ही नही इसलिए सड़क पर उनका पहला हक है।
सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस दौर में बेशक कुछ लोग चांद और मंगल ग्रह पर घर बनाने का सपना देख रहे हों, मगर आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने मवेशियों के साथ जंगल-जंगल घूम कर जीवन यापन करने वाले गुज्जर समुदाय के लोगों को आज भी बेघर होने पर खास मलाल नहीं है। इन दिनों गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर के जंगलों में लगातार बारिश के चलते हल्की ठंड शुरू होने के बाद उक्त समुदाय के लोग जिला के पांवटा दून, नाहन व गिन्नी घाड़ आदि गर्म अथवा मैदानी इलाकों के प्रवास पर निकल चुके हैं।
वहीं सिरमौरी साहित्यकार डॉ रूप कुमार शर्मा व कुछ अन्य इतिहासकारों के अनुसार सिरमौरी गुज्जर छठी शताब्दी में मध्य एशिया से आई हूण जनजाति के वंशज है, जिन्हें मैदानी इलाकों के शासकों ने हिमाचल व कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में खदेड़ दिया था। इस समुदाय का सोशल मीडिया, मीडिया, सियासत, औपचारिक शिक्षा, इंटरनेट व एंड्रॉयड फोन आदि से नजदीक का नाता नहीं है। इसके बावजूद पिछले कुछ अरसे से गुज्जर समुदाय के चुनिंदा लोग केवल बातचीत करने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं तथा इनके कुछ बच्चे स्कूल भी जाने लगे हैं। गुज्जर समुदाय के अधिकतर परिवारों के पास अपनी जमीन अथवा घर पर नहीं है, हालांकि कुछ परिवारों को सरकार द्वारा पट्टे पर जमीन उपलब्ध करवाई गई है। कुछ दशक पहले तक अनाज के बदले दूध देने वाले उक्त समुदाय के लोग अब अपने मवेशियों का दूध व खोया तथा घी आदि दुग्ध उत्पाद बेच कर अपना जीवन यापन करते हैं।वहीं उक्त समुदाय के अधिकतर लोग खुद को मुस्लिम मानते है, हालांकि नमाज, रोजे व कुरान आदि के लिए इन्हें कभी वक्त न मिला। सिरमौर में यह एकमात्र घुमंतू समुदाय है तथा इनकी जनसंख्या मात्र दो हजार के करीब है। खंड शिक्षा अधिकारी संगड़ाह के अनुसार घुमंतू गुज्जर समुदाय के बच्चों को लिए चलाए जा रहे विशेष मोबाइल स्कूलों मे इन छात्रों को अन्य विद्यार्थियों से ज्यादा सुविधाएं सरकार द्वारा मुहैया करवाई जा रही है। अनुसूचित जनजाति से संबंध रखने वाले गुज्जर समुदाय के बच्चों को वर्दी के अलावा जूते व स्कूल बैग आदि भी निशुल्क मुहैया करवाए जाते हैं। पिछले दो दिनों से सगंड़ाह से होकर उक्त समुदाय के चार डेरे निकल चुके हैं। जंगलों में परिवार के साथ जिंदगी बिताने के दौरान न केवल उक्त समुदाय के लोगों को केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि कईं बार जंगली जानवरों, स्थानीय लोगों व वन कर्मियों की बेरुखी का भी सामना करना पड़ता है। पहाड़ों का गृष्मकालीन प्रवास पूरा होने के बाद उक्त घुमंतू समुदाय अपने मवेशियों के साथ अब मैदानी इलाकों के अगले छह माह के प्रवास पर निकल चुका है और इसी तरह इनका पूरा जीवन बीत जाता है।
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