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November 23, 2024

हिमाचल हाई कोर्ट ने दी व्यवस्था,छात्रों को सुधारने के लिए टीचर की हल्की यातना अपराध नहीं

News portals-सबकी खबर (शिमला )

हिमाचल प्रदेश के स्कुल छात्र के व्यवहार में सुधार लाने के मकसद से शिक्षक द्वारा दी जाने वाली हल्की-फुल्की यातना को आपराधिक कृत्य नहीं आंका जा सकता। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम निर्णय में व्यवस्था दी है कि शिक्षक छात्र को हल्की यातना दे सकता है, लेकिन यह यातना भविष्य में छात्र के शारीरिक और मानसिक विकास में किसी तरह से बाधा नहीं बननी चाहिए। अध्यापक अगर किसी छात्र को उसके विकास के लिए शारीरिक तौर पर चोटिल करता है, तो उस परिस्थिति में अध्यापक के विरुद्ध आपराधिक मामला चलाया जा सकता है। यह व्यवस्था न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने राजधानी के एक प्रतिष्ठित स्कूल की अध्यापिका के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी और अपराधिक मामले को निरस्त करते हुए दी। अदालत ने कहा कि पाठशाला में बच्चों को पढ़ाई के लिए छोड़ते समय अभिभावक बिना किसी शर्त के स्कूल प्रबंधन के हवाले करते हैं और वहां उनकी देख-रेख और पढ़ाई के लिए तैनात स्टाफ  बच्चों के हित के लिए माता-पिता की तरह कार्यवाही कर सकते हैं। हर घर में माता-पिता भी बच्चों की बेहतरी के लिए हल्की-फुल्की यातना भी देते हैं, ताकि बच्चा भविष्य में गलती न करे।

अदालत के समक्ष रखे गए तथ्यों के अनुसार 24 सितंबर, 2012 को दो छात्रों को प्रार्थी अध्यापिका ने कक्षा में दो-दो थपड़ मारे। अध्यापिका की मार से आहत होकर इन 12-12 वर्षीय छात्रों ने स्कूल के नजदीक काली ढांक से छलांग लगा दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी। पुलिस ने इस मामले में स्कूल की प्रधानाचार्या और प्रार्थी अध्यापिका के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाने के अलावा बाल संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया। पुलिस ने आत्महत्या करने के लिए उकसाने के बारे में साक्ष्यों के अभाव में स्कूल की प्रधानाचार्य और अध्यापिका को छोड़ दिया और बाल संरक्षण अधिनियम के तहत अध्यापिका के विरुद्ध मामला चलाया। प्रार्थी ने अदालत में दलील दी कि स्कूल में एक अभिभावक की भूमिका अदा करते हुए उसने बच्चों को डांटा था, जो कि उनके भविष्य की बेहतरी के लिए था और गलती करने पर बच्चों को डांटा जाना जरूरी भी है। घर पर भी माता-पिता अपने बच्चों को हल्की-फुल्की यातना भी देते हैं। प्रार्थी द्वारा बच्चों को गलती पर डांट लगाना आपराधिक मामले की परिभाषा में नहीं आता, इसलिए इस मामले को रद्द किया जाए। हाई कोर्ट ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए प्रार्थी के विरुद्ध चल रहे अपराधिक मामले को रद्द करने का निर्णय सुनाया।

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