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बागबानी विशेषज्ञों ने सेब उत्पादकों को सुझाव दिया है कि सेब के पेड़ों की काट छांट (प्रूनिंग) फरवरी में ही करें।इससे सेब के पेड़ों पर विपरीत असर पड़ेगा। कटिंग के बाद पेड़ों को मिले घाव भरने में अधिक समय लगता है। बागबानी विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश के कई इलाकों में बागबानों ने दिसंबर में ही सेब पेड़ों की काट-छांट करने का काम शुरू कर दिया है। दिसंबर और जनवरी में पेड़ों की काटछांट करने से कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं, इसलिए प्रूनिंग के लिए उचित समय की इंतजार करें। बागबानी विशेषज्ञ कहते हैं कि दिसंबर और जनवरी में प्रूनिंग करने से सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि पेड़ सुप्तावस्था में रहते हैं। ऐसी स्थिति में कटिंग करने से सेब के पेड़ों पर बीमारियां पनपने की आशंका बनी रहती है। फरवरी में पेड़ों की काटछांट करने से पेड़ों पर कैंकर और वूली एफिड की समस्या भी नहीं रहती और पेड़ भी सुरक्षित रहते हैं।
बगीचों में बनाएं तौलिए, पेड़ों पर चूने का घोल लगाएं
दिसंबर और जनवरी में सिर्फ बगीचों में तौलिए बनाएं। इस दौरान बगीचों में पेड़ से तीन फुट की दूरी पर तौलिए बनाने का कार्य करें। तीन फुट की दूरी पर तौलियों में हल्की जड़ें होती हैं, जबकि इसके अंदर पेड़ की मुख्य जड़ें गहरी रहती हैं। इस तरीके से पेड़ों तक खुराक पहुंचने में आसानी रहती है। सेब के पेड़ों में चूना, नीला थोथा और अलसी के तेल का घोल भी लगाएं और इससे पेड़ों पर कैंकर और वूली एफिड की समस्या से निजात मिलती है।
फरवरी में करें पेड़ों की काट-छांट
बागबानी विशेषज्ञ डा.एसपी भारद्वाज कहते हैं कि बागबानों को चाहिए कि सेब पेड़ों की काटछांट का काम फरवरी में करें। इससे पेड़ों के जख्म जल्दी भरते हैं और पेड़ को खुराक भी मिल जाती है। पेड़ों को कैंकर और वूली एफिड की बीमारी का असर नहीं रहता। उन्होंने कहा कि प्रूनिंग में बागबान जल्दबाजी न करें। दिसंबर और जनवरी में सूखे में उचित दूरी बनाकर तौलिए बनाएं और चूने का घोल बनाकर लगाएं। बगीचों में नमी होने के बाद ही खाद भी डालें।
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