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उपमंडल संगड़ाह तथा क्षेत्र के कई अन्य हिस्सों में विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले दस्तकार पुश्तों से कृषि उपकरण बनाने की परंपरा कायम रखे हुए हैं। घिल्ले, टोकरी, छाबी व ओड़े आदि आदि उक्त समुदाय की आजीविका का मुख्य जरिया हैं। बांस, निगाल, बीऊल व तूंग आदि पेड़-पौधों की स्टिक को चीर कर यह उपकरण तैयार किए जाते हैं। इनके बिना क्षेत्र में कृषि का अस्तित्व संभव नहीं है।
सुंदर सिंह, बलीराम व रविंद्र आदि दस्तकारों ने बताया कि हालांकि इस पेशे से उन्हें बहुत ज्यादा आमदनी नहीं होती, मगर वे खाली समय में खेती अथवा मजदूरी भी करते हैं।
कल्याण व उद्योग विभाग द्वारा हालांकि कई बार इन पुश्तैनी दस्तकारों के लिए प्रशिक्षण व अनुदान जैसी छोटी-मोटी योजनाएं भी शुरू की गईं, मगर दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर लोगों को इनका लाभ नहीं मिला। इनके अधिकतर औजार जहां स्थानीय लोहार बनाते हैं, वहीं इनके प्रशिक्षण के लिए देश के किसी भी आईटीआई अथवा इंजीनियरिंग कॉलेज के पास ट्रेनर उपलब्ध नहीं हैं।
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