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जब-जब संसार में अधर्म बढ़ता है, तब मां भगवती विभिन्न रुपों में प्रकट होकर दैत्यों का नाश तथा धर्म की स्थापना करती हैं। मां भक्तजनों के हृदय में निवास कर उनके साथ रहती हैं। यह विचार उपमंडल संगड़ाह के गांव रजाना में श्रीमद् देवी भागवत गीता सुनाते हुए मथुरा-वृंदावन से आए भागवताचार्य विजयानंद संक्रान्ति ऊधौ ने सोमवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि, श्रीमद् देवी भागवत के सप्तम स्कन्ध में माता भगवती ने हिमालय को श्रीमद्देवी गीता सुनाते हुए अपने निवास स्थानों में से कोल्हापुर (महाराष्ट्र) को प्रथम तथा रेणुकाजी (हिमाचल) द्वितीय बताया है। इसलिए यहां देवी साक्षात रूप से वास करती हैं, जो भगवान परशुराम जी की माता हैं।
श्री रामचरितमानस में भी गोस्वामी जी लिखते हैं कि, परुशुराम पितु आज्ञा राखी। मारी मातु जगत सब साखी।। परन्तु पिता ने जब परशुरामजी से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा, तो उन्होंने अपनी माता का जीवन दान (पुनर्जीवन) मांगा तथा ऋषि जमदग्नि ने तुरंत रेणुकाजी को फिर से जीवित कर दिया। इस चरित्र से यहां माता भगवती सदा सदा के लिए पति प्रेरित व पुत्र को पालने वाली, पित्रों भक्त पुत्र-रत्न को भगवान का नाम देकर जगत पूज्य मां वैष्णो देवी के रूप में हो गयी। इसलिए माता रेणुकाजी की सेवा पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करें। ऊधौ ने कहा कि, देवी के 108 शक्ति पीठों के नाम जपने व सुनने से पित्रों को आकर्षित तृप्ति होती हैं। पितृ पक्ष में श्रीमद् देवी भागवत पुराण पाठ कर अपने पितरों की प्रसन्नता का कार्य करना अत्यंत लाभकारी है। विजयानंद ऊधौ ने प्रवचन करते हुए कहा कि, साधक को साधना के लिए तीनों चीजें तन,मन व धन चाहिए। सबसे पहले तन काम करना के लिए ,दूसरा मन व तीसरा स्थान धन का है। इस धार्मिक आयोजन के दौरान सोहन सिंह, जोगेन्द्र ठाकुर व मीरा देवी आदि आयोजकों सहित अनेक श्रद्धालूजन उपस्थिति रहे।
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