News portals -सबकी खबर (संगड़ाह) सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस दौर में बेशक कुछ लोग चांद तथा मंगल ग्रह पर घर बनाने का सपना देख रहे हों, मगर आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने मवेशियों के साथ जंगल-जंगल घूम कर जीवन यापन करने वाले सिरमौरी गुज्जर समुदाय के अधिकतर लोगों को आज भी बेघर होने पर खास मलाल नहीं है। इन दिनों गिरिपार अथवा Greater Sirmaur के जंगलों में लगातार बारिश के चलते हल्की ठंड शुरू होने के बाद उक्त समुदाय के लोग जिला के पांवटा दून, धारटीधार व गिन्नी घाड़ आदि गर्म अथवा मैदानी इलाकों के प्रवास पर निकल चुके हैं। गिरिपार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चूड़धार व उपमंडल संगड़ाह व शिलाई के पहाड़ी जंगलों में सदियों से अप्रैल महीने में उक्त समुदाय के लोग अपनी भैंस, गाय, बकरी व बैल आदि मवेशियों के साथ गर्मियां बिताने पहुंचते हैं। अपने मवेशियों के साथ पैदल गंतव्य तक पहुंचने में इन्हे करीब एक माह का समय लग जाता है। इनके मवेशियों के सड़क से निकलने के दौरान वाहन चालकों को कईं बार जाम की समस्या से जूझना पड़ता है तथा कईं Drivers को इन्हे बार-बार कोसते भी सुना जाता है। गुज्जरों की मानें तो वह सदियों से इन क्षेत्रों में घूम रहे हैं और तब सड़कें थी ही नही इसलिए सड़क पर उनका पहला हक है। डॉ रूप कुमार शर्मा व कुछ अन्य सिरमौरी साहित्यकारों के अनुसार गुज्जर छठी शताब्दी में Centrel Asia से आई हूण जनजाति के वंशज है, जिन्हें पंजाब व मैदानी इलाकों के शासकों ने हिमाचल व कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में खदेड़ दिया था। इस समुदाय के ज्यादातर लोगों का Social Media, मीडिया, सियासत, औपचारिक शिक्षा, Internet व एंड्रॉयड फोन आदि से नजदीक का नाता नहीं है। इसके बावजूद पिछले कुछ अरसे से गुज्जर समुदाय के कुछ लोग Mobile Phone का इस्तेमाल करने लगे हैं तथा इनके कुछ बच्चे स्कूल भी जाने लगे हैं। गुज्जर समुदाय के अधिकतर परिवारों के पास अपनी जमीन अथवा घर पर नहीं है, हालांकि कुछ परिवारों को सरकार द्वारा पट्टे पर जमीन उपलब्ध करवाई गई है। कुछ दशक पहले तक अनाज के बदले दूध देने वाले उक्त समुदाय के लोग अब अपने मवेशियों का दूध व खोया तथा घी आदि दुग्ध उत्पाद बेच कर अपना जीवन यापन करते हैं। उक्त समुदाय के अधिकतर लोग खुद को मुस्लिम मानते है, हालांकि नमाज, रोजे व कुरान आदि के लिए इन्हें कभी वक्त नही मिला। सिरमौर में Gujjar एकमात्र घुमंतू समुदाय है तथा इनकी जनसंख्या मात्र अढ़ाई हजार के करीब है। जंगलों में परिवार के साथ जिंदगी बिताने के दौरान न केवल उक्त समुदाय के लोगों के अनुसार उन्हें न केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि कईं बार जंगली जानवरों, स्थानीय लोगों व संबंधित कर्मचारियों की बेरुखी का भी सामना करना पड़ता है। पहाड़ों का गृष्मकालीन प्रवास पूरा होने के बाद उक्त घुमंतू समुदाय अपने मवेशियों के साथ अब मैदानी इलाकों के अगले छह माह के प्रवास पर निकल चुका है और इसी तरह इनका पूरा जीवन बीत जाता है।
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