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प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे जारी होने से पहले ही मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में छिड़ी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। पार्टी के एक गुट ने हाईकमान को पत्र लिखा है, जिसमें मांग की गई है कि 8 दिसंबर को मतगणना के बाद चुने गए विधायकों को ही मुख्यमंत्री का चयन करने का अधिकार दिया जाए। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल को भेजे पत्र से हिमाचल में कांग्रेस की राजनीति गरमा गई है। इस पूरे घटनाक्रम को प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से रोकने से जोड़ा जा रहा है। बीते कई वर्षों से कांग्रेस की राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। इस बार का विधानसभा चुनाव पहले से अलग है। वीरभद्र सिंह के रहते प्रदेश कांग्रेस में किसी अन्य नेता का कद नहीं बढ़ सका। अब वीरभद्र सिंह की जगह उनकी पत्नी और बीते वर्ष मंडी संसदीय सीट से उपचुनाव जीतकर सांसद बनी प्रतिभा सिंह के हाथ में कांग्रेस की कमान है। वीरभद्र के मुख्यमंत्री रहते बतौर पार्टी अध्यक्ष सुखविंद्र सुक्खू ने संगठन में अपनी पैठ गहरी की है। वीरभद्र और सुक्खू के बीच बीती सरकार के समय खूब वाक युद्ध चला था। अब सुक्खू को चुनाव प्रचार कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया है। ऐसे में अगर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल जाता है कि पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा। इसको लेकर पार्टी हाईकमान को खूब कसरत करनी पड़ेगी।प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले जिला कांगड़ा के कांग्रेस नेताओं की चुप्पी पार्टी के लिए पहेली बनी हुई है। इन नेताओं ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस के भीतर जारी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में जिले के नेताओं के कोई बयान अभी तक नहीं आए हैं। न ही जिले के किसी नेता ने प्रतिभा सिंह या सुखविंद्र सुक्खू के पास हाजिरी लगाई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह के करीबियों में शामिल चौधरी चंद्र कुमार, सुधीर शर्मा, केवल सिंह पठानिया अभी तक शांत दिख रहे हैं। पूर्व मंत्री दिवंगत जीएस बाली के पुत्र रघुवीर बाली सहित अजय महाजन, संजय रत्न और आशीष बुटेल की गतिविधियां भी अभी तक अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के नतीजे जारी होने के बाद ही जिला कांगड़ा के नेता अपनी दिशा तय करेंगे।
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