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हिमाचल प्रदेश आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजीव भूषण अम्बिया ने बताया कि क्या वैचारिक मतभेद होना व्यवहारिक मतभेदों को जन्मदाता है ? यह प्रश्न जहन में बार बार आता है,क्या किसी भी विचार धारा के साथ चलना वयवहार में अन्तर लेकर आता है। आज के समय मे बड़ी-बड़ी बातें करने बाले या उपदेश देने बाले इस बात को नहीं समझ पा रहे की व्यवहारिक व वैचारिक मे मुख्य अन्तर क्या है और यह समाज के लिए घातक बनते जा रहे हैं
। या फिर ज्यों कह लीजिये की विचारों मे मतभेद को आज के युग पुरुष निजी रूप से देखते है और उसको व्यवहारिक बना देते हैं। विचार वास्तव मे सभी के अलग अलग हो सकते हैं यह कोई बड़ी बात नहीं कि किसी व्यक्ति विशेष के विचार दूसरे से मिलते हो या नहीं भी मिलते हो ,मोजूदा समय में यदि किसी के विचार नहीं मिले तो इसको व्यवहार मे ले आना कहीं भी उचित नहीं हो सकता , कहने को तो सभी यही कहते हैं कि पर वास्तविक रूप मे कुछ और ही होता है । आज उन महापुरुषों या महान लोगों की बात कुछ अजीब सी लगती है जब कोई भी विचार ,व्यवहार मे बदल जाता है । एक ऊंचे मंच पर खड़े होकर यह कह देना की मै इन दोनों मे कोई भी अन्तर नहीं समझता और कुछ ही समय के बाद बाद उनही शब्दों की तौहीन करके उसी को कर्म मे बदल देना चलन मे हो गया ।
उन्होंने कहा कि बात सिर्फ छोटी सी है जिस को मै शब्दों मे लाना चाहता हूँ की आज के समय में वैचारिक मतवेद ही वास्तव मे वयवहारिक मतभेद हैं । यदि कोई व्यक्ति विशेष एक के विचारों के साथ सहमति न दे तो दूसरा उसी को अपने खुद के व्यवहार मे अपना लेता है । बात हाल ही में सम्पन्न हुये चुनावों की है जिसमे एक व्यक्ति जिसका की नाम सलीमखान है जो की श्री अरविंद केजरीवाल जी के विचारों से प्रभावित होकर महज एक कार्यकर्ता की हैसियत से आम आदमी पार्टी की प्रचार सभा मे शामिल क्या हुआ की उसी को एक निजी न्यूज़ कंपनी की पत्रकार की नौकरी से हाथ धोना पड़ा । क्या एक आम व्यक्ति जो की किसी निजी कंपनी मे कार्यरत है वो किसी अन्य पार्टी की विचार धारा से प्रभावित होकर उसके साथ नहीं जुड़ सकता क्यों सत्ता पर विराजमान व्यक्ति विशेष इस बात को भूल जाते हैं की आप अपने विचार या अपनी पार्टी के विचार किसी पर भी थोप नहीं नहीं सकते ।
यह सभी का संबिधानिक अधिकार है की वो किसी के विचार या अभिव्यक्ति को अपने जीवन मे ला सकता है या कहने को यह कह लिया जाए की बोलने समझने व करने की आज़ादी हमे हमारा संबिधान देता है । अगर अपने संबिधान को मानना गुनाह है तो मै गुनहगार हूँ पर फिर आप क्या कर रहे है की किसी पर भी आप अपने राजनीतिक ज़ोर को चला लेंगे । राजनीतिक बदला लेने के लिए आज राजनीतिक वयवहार कितना गिर गया है जो आपके विचारों को अपनाये उसके निजी जीवन पर आप प्रहार कर दो । और उसको उसकी नौकरी से हाथ इसलिए धोने पड़े कि वो आप कि विचारधारा से प्रभावित क्यों नहीं है ।
यह बदले कि राजनीति आखिर कब तक चलन मे रहेगी आखिर क्यों एक आम कार्यकर्ता को यह सब झेलना पड़ता है । क्यों एक पार्टी इस बात को नहीं समझ सकती या अपना सकती कि आप के विचार उस वयक्ति विशेष को प्रभावित नहीं करते ,बदले कि राजनीति आज बड़े नेताओं के दिलों मे घर कर गए हैं क्या या फिर वे इस बात को भूल गए हैं कि एक दिन दूसरे कि परी भी आएगी ।क्यों इतनी ओछी राजनीति की जाती है की कोई भी दूसरी पार्टी की विचारधारा से जुड़ जाए तो उनको डर लगने लगता है या डर की राजनीति करने पर उतारू हो जाते हैं। या फिर सलीम खान खुद में इतना बड़ा नाम है की राजनीति में कई उसपर निजी तौर पर प्रहार किया जा रहा ।
यह डर की राजनीति व नफरत की राजनीति आज के समय मे जो बढ़ती जा रही है वो आने वाले समय मे घातक सिद्ध होगी । मैं राजीव अम्बिया हर उस सलीम खान के साथ खड़ा हूँ जो एक विचार धारा से जुड़कर देश निर्माण में जुटा है और विपक्ष उस पर प्रहार कर रहा है । सलीम खान सिर्फ एक पार्टी से नही बल्कि एक विचारधारा से जुड़े हैं हम उस विचारधारा से जुड़कर उसको आगे लाने की कोशिश में हैं जिसको असज पूरा विश्व मानता है । साथ ही आमजन से अपील है कि इस नफरत की राजनीति को छोड़ उस विचारधारा को अपनाएं जो सबके लिए समान हों व समान कार्य करती हो।
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