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हिमाचल प्रदेश में रेशम विभाग पहली बार एरी रेशम कीट पालन की खेती शुरू करने जा रहा है। यह एरी रेशम कीट पालन अरंडी के पौधे पर होता है और इसके लिए गर्म स्थान उपयुक्त होते हैं। किसान इस पौधे से एक साल में छह बार रेशम प्राप्त कर सकते हैं। नालागढ़, ऊना और बिलासपुर में इसका ट्रायल सफल रहा है। पहले ट्रायल के सफल रहने पर अब विभाग ने 500 किसानों के साथ इसे शुरू करने का लक्ष्य रखा है। एरी रेशम ऊन और कपास के साथ आसानी से मिश्रित हो जाता है और जंगली प्रजाति होने के चलते इसमें बीमारी लगने का खतरा न के बराबर है। यह रेशम गर्म इलाकों में उगेगा। बिलासपुर से 200, ऊना से 100, सिरमौर से 100 और हमीरपुर से 100 किसानों के साथ इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की जाएगी। रेशम विभाग के उपनिदेशक बलदेव चौहान ने बताया कि ट्रायल के बाद प्रदेश में एरी रेशम कीट पालन शुरू किया जा रहा है। प्रदेश के कुल रेशम उत्पादन में से 40 प्रतिशत बिलासपुर में होता है, यहां इसे बड़े स्तर पर शुरू किया जाएगा। बिलासपुर की बंदलाधार और सिरमौर जिले से धौलाकुआं इसके लिए उपयुक्त स्थान हैं। इसके अलावा हमीरपुर, सोलन और ऊना में भी इसे शुरू किया जा रहा है। संवाद प्रदेश में 10,482 किसान शहतूत रेशम पालन से जुड़े हुए हैं। शहतूत रेशम पालन में पौधे से साल में सिर्फ दो बार रेशम प्राप्त किया जा सकता है। वहीं, एरी रेशम पालन में साल में छह बार रेशम प्राप्त होता है। इसे तैयार होने में 20 से 22 दिन का समय लगता है। एरी रेशम पालन से किसानों को आय का एक नया जरिया मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी अधिक मांग हैं। एरी रेशम अन्य रेशम की तुलना में गहरा और घना होता है। इसके अलावा विभाग ने बालीचौकी में ओकटसर रेशम पालन शुरू किया है। यह भी एक जंगली प्रजाति है। प्रदेश में 242 किसान इस रेशम कीट पालन से जुड़े हैं।
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