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November 26, 2024

ठंड शुरू होते ही नए परिवार के साथ गिरीपार के ग्रीष्मकालीन प्रवास से लौटे समर विजिटर पक्षी

News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी जिला सिरमौर के पहाड़ी इलाकों में मैदानी क्षेत्रों से ग्रीष्मकालीन प्रवास पर आए लाखों घुमंतू पक्षी इन दिनों यहां से लौटने लगे हैं। क्षेत्र में जारी बारिश के दौर के चलते यहां हल्की ठंड दस्तक दे चुकी है। सिरमौर के पांवटा साहिब व अन्य मैदानी इलाकों के अलावा पड़ोसी राज्य हरियाणा, उत्तराखंड व पंजाब आदि में उक्त पक्षी अगले पांच से छः माह बिताएंगे। क्षेत्र में अप्रेल के पहले सप्ताह में पंहुचने वाले समर विजिटर बर्डस में स्थानीय भाषा में घुघती कही जाने वाली डव प्रमुख है तथा इसकी पांच उपजातियां इलाके में देखी जा सकती है। पक्षी प्रेमियों अथवा वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार डव अथवा घूघी के अलावा दो किस्मों के पैराकिट्स अथवा तोते, कुकू, कोयल तथा बुलबुल आदि परिंदे भी भारी संख्या में हिमालयी जंगलों में ग्रीष्मकालीन प्रवास पर पंहुचते हैं।

उक्त परिंदों की गणना हालांकि अब तक वन्य प्राणी अथवा वन विभाग द्वारा नहीं की गई मगर क्षेत्र के पर्यावरण प्रेमियों के अनुसार ग्रेटर सिरमौर में तीन लाख के करीब प्रवासी पक्षी गर्मियां बिताने पहुंचते हैं। पंजाब, हरियाणा व प्रदेश के विभिन्न मैदानी इलाकों से आने वाले इन परिंदों की खास बात यह है कि यह इसी क्षेत्र में प्रजनन अथवा बच्चे पैदा करते हैं तथा अपने परिवार के नए सदस्यों के साथ इन दिनों मैदानी इलाकों को लौट जाते हैं। सदियों से पहाड़ों में गर्मियां बिताने आने वाले इन परिंदों का जिक्र क्षेत्र के लोकगीतों में भी बार-बार आता है तथा गिरिपार अथवा सिरमौर की दर्जन भर से अधिक नाटियों में डब अथवा घुघूती की मनमोहक कूक व आकर्षण रंग रूप का जिक्र आता है।

क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुसार आज भी इनकी तादाद उतनी ही देखी जाती है, जितनी कि, दशकों पहले हुआ करती थी। इनमें से कुछ पक्षियों का लोग मीट के लिए शिकार भी करते हैं, हालांकि क्षेत्रवासियों तथा वन्य प्राणी विभाग के कर्मचारियों के अनुसार आमतौर पर इन्सानों से दूर रहना पसंद करने वाले इन परिंदों का शिकार करना आसान नहीं है। समर विजिटर परिंदे हर बार न केवल पक्षी प्रेमियों, बल्कि स्थानीय लोगों तथा क्षेत्र में आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते हैं। बहरहाल गिरिपार के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ आदि में तापमान में गिरावट आने के चलते उक्त परिंदे क्षेत्र के सदाबहार हिमालई जंगलों से निकल चुके हैं।

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