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ताऊ देवीलाल स्टेडियम में 228 किलोमीटर का रिकॉर्ड बना चुका है सिरमौरी चीता |
100 किलोमीटर वर्ल्ड चैंपियनशिप क्वालिफाइंग रन में शामिल हुए देश के विभिन्न राज्यों के धावकों को पछाड़कर सुनील ने एक बार फिर हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन किया तथा उसका अगला लक्ष्य अब सौ किलोमीटर रन विश्व चैंपियनशिप रहेगा ।अमेरिका, चीन, ताईवान, ब्राज़ील व दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न मैराथन में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके सिरमौर जिला से संबंध रखने वाले अल्ट्रामैरॉथनर सुनील शर्मा द्वारा रविवार को गुड़गांव में आयोजित 100 किलोमीटर क्वालिफाइंग रन में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया जा चुका है।
उक्त रन को उन्होंने महज 8 घंटे 2 मिनट में पूरा कर मुम्बई के धावक दीपक के 8 घंटे 4 मिनट के रिकॉर्ड को ब्रेक कर दिया है। संगड़ाह क्षेत्र का यह धावक इससे पूर्व गत 2 फरवरी को ताऊ देवीलाल स्टेडियम पंचकूला में हुई रन में 228 किलोमीटर का रिकॉर्ड बनाकर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुका हैं। पंचकूला में आयोजित 24 घंटे की टफमेन स्टेडियम रन में उन्होंने 228 किलोमीटर की दूरी तय कर उत्तराखंड के धावक विजय शाह के 222 किलोमीटर को ब्रेक किया था। अल्ट्रा मैराथनर सुनील शर्मा का अगला लक्ष्य आगामी 18 व 19 जुलाई को बैंगलोर में आयोजित होने वाली एशियन मैराथन चैंपियनशिप भी है। सुनील के अब तक के रिकॉर्ड के मुताबिक उन्हें एशियन चैंपियनशिप के साथ-साथ विश्व मैराथन प्रतियोगिता का टिकट भी मिल चुका है। रविवार को गुड़गांव के देवीलाल स्टेडियम में सुनील के साथ मौजूद उनके परिवार के सदस्य एवं समर्थक कुलानंद शर्मा, जोगिंद्र व रवि शर्मा ने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय व एशियन चैंपियनशिप के लिए वह प्रतिदिन 8 से 10 घंटे तक पसीना बहा रहा हैं।
सिरमौरी चीता के नाम से मशहूर उक्त अल्ट्रामैराथनर के पिछले एक साल के बेहतर प्रदर्शन व तैयारी के चलते उन्हें अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में सफलता की पूरी उम्मीद है। सुनील व उनके परिजनों को पिछले चार वर्षों से बार-बार प्रयास किए जाने व नेताओं के वादों के बावजूद हिमाचल सरकार से यथासंभव सहयोग न मिलने का मलाल है। “न्यूज़ पोर्टल्स -सबकी खबर ” से बातचीत में उन्होंने कहा कि, पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा वर्तमान सरकार के मंत्रियों से भी उन्हे वादों के मुताबिक सहयोग नहीं मिला। अंतर्राष्ट्रीय स्तर का धावक बनने के लिए हर खिलाड़ी को बेहतर किट, डाइट, फिजियोथैरेपिस्ट व अच्छे कोच की जरूरत रहती है, जिस पर हर वर्ष अच्छी खासी रकम खर्च होती है। उपमंडल संगड़ाह के गांव माइना के किसान परिवार से संबंध रखने वाला उक्त युवक तीन वर्ष पहले तक हालांकि चंडीगढ़ की एक कंपनी में नौकरी कर अपनी तैयारी का खर्चा उठाया जा रहा था, मगर अब लगातार इवेंट होने के चलते नौकरी संभव नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की विभिन्न दौड़ पर आने वाले लाखों के खर्च के लिए उन्हें निजी कंपनियों की स्पॉन्सरशिप का मोहताज होना पड़ रहा है तथा उनकी शर्ते माननी पड़ रही है। सरकारी स्तर के विभिन्न पुरस्कार अथवा सम्मान के लिए भी उनका नाम अब तक नहीं भेजा गया। बहरहाल सरकारी अनदेखी के बावजूद हिमाचली धावक सुनील की कामयाबी का सफर जारी है।
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