News portals- सबकी खबर (नई दिल्ली) त्योहारों की गूंज सुनाई दे रही है चारों तरफ, दिवाली दरवाजे पर दस्तक दे रही है। और आज एक ऐसा अवसर है इस एक ही परिसर में, इस एक ही premises में, एक ही मंच पर स्टार्ट अप्स भी हैं और देश के लाखों किसान भी हैं। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान, एक प्रकार से ये समारोह, इस मंत्र का एक जीवंत स्वरूप हमें नजर आ रहा है | भारत की खेती के सभी बड़े भागीदार आज प्रत्यक्ष रूप से और वर्चुअली, पूरे देश के हर कोने में इस कार्यक्रम में हमारे साथ जुड़े हुए हैं। ऐसे महत्वपूर्ण मंच से आज किसानों के जीवन को और आसान बनाने, किसानों को और अधिक समृद्ध बनाने और हमारी कृषि व्यवस्थाओं को और आधुनिक बनाने की दिशा में कई बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। आज देश में 600 से ज्यादा प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों की शुरुआत हो रही है। और मैं अभी यहां जो प्रदर्शनी लगी है, उसे देख रहा था। एक से बढ़कर एक ऐसी अनेक टेक्नोलॉजी के इनोवेशन वहां हैं, तो मेरा मन तो कर रहा था कि वहां जरा और ज्यादा रुक जाऊं, लेकिन त्योहरों का सीजन है आपको ज्यादा रोकना नहीं चाहिए, इसलिए मैं मंच पर चला आया। लेकिन वहां मैंने ये प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र की जो रचना देखी, उसका एक जो मॉडल खड़ा किया है, मैं वाकई मनसुख भाई और उनकी टीम को बधाई देता हूं कि किसान के लिए सिर्फ उर्वरक खरीद-बिक्री का केंद्र नहीं है, एक सम्पूर्ण रूप से किसान के साथ घनिष्ठ नाता जोड़ने वाला, उसके हर सवालों का जवाब देने वाला, उसकी हर आवश्यकता में मदद करने वाला ये किसान समृद्धि केंद्र बना है। थोड़ी देर पहले ही, देश के करोड़ों किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में 16 हज़ार करोड़ रुपए की एक और किश्त उनके खाते में जमा हो गई है। आप में से अभी जो किसान यहां बैठे होंगे, अगर मोबाइल देखेंगे तो आपके मोबाइल पर खबर आ गई होगी कि 2000 रुपये आपके जमा हो चुके हैं। कोई बिचौलिया नहीं, कोई कंपनी नहीं, सीधा-सीधा मेरे किसान के खाते में पैसा चला जाता है। मैं इस दिवाली से पहले इस पैसे का पहुंचना, खेती के अनेक महत्वपूर्ण कामों के समय पैसा पहुंचना, मैं सभी हमारे लाभार्थी किसान परिवारों को, देश के कोने-कोने में सभी किसानों को, उनके परिवारजनों को इस अवसर पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं। जो एग्रीकल्चर स्टार्ट अप्स यहां पर हैं, इसके जो आयोजन में आए हैं, मैं उन सबका भी जो हिस्सा ले रहे हैं, किसानों की भलाई के लिए उन्होंने जो नए-नए इनोवेशन किए हैं, उनकी (किसानों की) मेहनत कैसे कम हो, उनके पैसों में बचत कैसे हो, उनके काम में गति कैसे बढ़े, उनकी सीमित जमीन में ज्यादा उत्पादन कैसे हो, ऐसे अनेक काम, ये हमारे स्टार्टअप वाले हमारे इन नौजवानों ने किए हैं। मैं वो भी देख रहा था।
एक से बढ़कर एक इनोवेशन नजर आ रहे हैं। मैं ऐसे सभी युवाओं को भी, जो आज किसानों के साथ जुड़ रहे हैं, उनको बहुत-बहुत बधाई देता हूं और उनका इसमें भागीदार होने के लिए हृदय से अभिनंदन और स्वागत करता हूं। आज वन नेशन, वन फर्टिलाइजर, इसके रूप में किसानों को सस्ती और क्वालिटी खाद भारत ब्रांड के तहत उपलब्ध कराने की योजना है, ये शुरू हो गई है आज। 2014 से पहले फर्टिलाइजर सेक्टर में कितने बड़े संकट थे, कैसे यूरिया की कालाबाज़ारी होती थी, कैसे किसानों का हक छीना जाता था, और बदले में किसानों को लाठियां झेलनी पड़ती थीं, ये हमारे किसान भाई-बहन 2014 के पहले के वो दिन कभी नहीं भूल सकते हैं। देश में यूरिया के बड़े-बड़े कारखाने बरसों पहले ही बंद हो चुके थे। क्योंकि एक नई दुनिया खड़ी हो गई थी, इम्पोर्ट करने से कई लोगों के घर भरते थे, जेबें भरतीं थीं, इसलिए यहां के कारखाने बंद होने में उनका आनंद था। हमने यूरिया की शत प्रतिशत नीम कोटिंग करके उसकी कालाबाजारी रुकवाई। हमने बरसों से बंद पड़े देश के 6 सबसे बड़े यूरिया कारखानों को फिर से शुरू करने के लिए मेहनत की है। अब तो यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत अब तेजी से लिक्विड नैनो यूरिया, प्रवाही नैनो यूरिया की तरफ बढ़ रहा है। नैनो यूरिया, कम खर्च में अधिक प्रोडक्शन का माध्यम है। एक बोरी यूरिया, आप सोचिए, एक बोरी यूरिया को जिसके लिए जरूरत लगती है, वो काम अब नैनो यूरिया की एक छोटी सी बोतल से हो जाता है। ये विज्ञान का कमाल है, टेक्नोलॉजी का कमाल है, और इसके कारण किसानों को जो यूरिया के बोरे लाना-ले जाना, उसकी मेहनत, ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा, और घर में भी जा करके रखने के लिए जगह, इन सब मुसीबतों से मुक्ति। अब आप आए बाजार में, दस चीजें ले रहे हैं, एक बोतल जेब में डाल दिया, अपना काम हो गया। फर्टिलाइजर सेक्टर में Reforms के हमारे अब तक के प्रयासों में आज दो और प्रमुख reform, बड़े बदलाव जुड़ने जा रहे हैं पहला बदलाव ये है कि आज से देशभर की सवा 3 लाख से अधिक खाद की दुकानों को प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों के रूप में विकसित करने के अभियान को आरंभ किया जा रहा है। ये ऐसे केंद्र होंगे जहां सिर्फ खाद ही नहीं मिलेंगी ऐसा नहीं, बल्कि बीज हों, उपकरण हों, मिट्टी की टेस्टिंग हो, हर प्रकार की जानकारी, जो भी किसान को चाहिए, वो इन केंद्रों पर एक ही जगह पर मिलेगी। हमारे किसान भाई-बहनों को अब कभी यहां जाओ, फिर वहां जाओ, यहां भटको, वहां भटको, इस सारे झंझट से भी मेरे किसान भाइयों को मुक्ति। और एक बड़ा महत्वपूर्ण बदलाव किया है, अभी नरेंद्र सिंह जी तोमर बड़े विस्तार से उसका वर्णन कर रहे थे। वो बदलाव है खाद के ब्रांड के संबध में, उसके नाम के संबंध में, प्रॉडक्शन की समान क्वालिटी के संबंध में। अभी तक इन कंपनियों के प्रचार अभियानों के कारण और वहां जो फर्टिलाइजर बेचने वाले लोग होते हैं, जिसको ज्यादा कमीशन मिलता है तो वो ब्रांड ज्यादा बेचता है, कमीशन कम मिलता है तो वो ब्रांड बेचना नहीं है। और इसके कारण किसान को जरूरत के हिसाब से जो गुणवत्ता वाला खाद मिलना चाहिए, वो इन स्पर्धा के कारण, भिन्न-भिन्न नामों के कारण और वो बेचने वाले एजेटों की मनमानी के कारण किसान परेशान रहता था। और किसान भी भ्रम में फंसा रहता था, पड़ोस वाला कहता कि मैं ये लाया तो उसको लगता था मैं ये लाया हूं मैंने तो गलती की, अच्छा छोड़ो इसको पड़ा रहने दो, वो मैं नया लेकर आता हूं। कभी-कभी किसान इस भ्रम में डबल-डबल खर्चा कर देता था। DAP हो, MOP हो, NPK हो, ये किस कंपनी से खरीदें। यही किसान के लिए चिंता का विषय रहता था। ज्यादा मशहूर खाद के फेर में कई बार पैसा भी ज्यादा देना पड़ता था। अब मान लीजिए उसके दिमाग में एक ब्रांड भर गया है, वो नहीं मिला और दूसरा लेना पड़ा, तो वो सोचता है चलो इसमें जरा पहले एक किलो उपयोग करता था, अब दो किलो करूं क्योंकि ब्रांड दूसरा है पता नहीं कैसे, मतलब उसका खर्च भी ज्यादा हो जाता था। इन सारी समस्याओं को एक साथ एड्रेस किया गया है। अब वन नेशन, वन फर्टिलाइजर से किसान को हर तरह के भ्रम से मुक्ति मिलने वाली है और बेहतर खाद भी उपलब्ध होने वाली है। देश में अब हिंदुस्तान के किसी भी कोने में जाइए, एक ही नाम, एक ही ब्रांड से, और एक समान गुणवत्ता वाले यूरिया की बिक्री होगी और ये ब्रांड है- भारत ! अब देश में यूरिया भारत ब्रांड से ही मिलेगी। जब पूरे देश में फर्टिलाइजर का ब्रांड एक ही होगा तो कंपनी के नाम पर फर्टिलाइज़र को लेकर होने वाली मारा-मारी भी खत्म हो जाएगी। इससे फर्टिलाइज़र की कीमत भी कम होगी, खाद, तेज़ी से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होगी। आज देश में लगभग 85 प्रतिशत हमारे जो किसान हैं, वो छोटे किसान हैं। एक हेक्टेयर, डेढ़ हेक्टेयर से ज्यादा जमीन नहीं है इनके पास।
और इतना ही नहीं, समय के साथ जब परिवार का विस्तार होता है, परिवार बढ़ता है तो उतने छोटे से टुकड़े के भी टुकड़े हो जाते हैं। जमीन और छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाती है और आजकल जलवायु परिवर्तन देखते हैं हम। दिवाली तो आ गई, बारिश जाने का नाम नहीं ले रही है। प्राकृतिक प्रकोप चलता रहता है। उसी प्रकार से अगर मिट्टी खराब होगी, अगर हमारी धरती माता की तबियत ठीक नहीं रहेगी, हमारी धरती माता ही बीमार रहेगी, तो हमारी मां उसकी उपजाऊ क्षमता भी घटेगी, पानी की सेहत खराब होगी तो और समस्याएं होंगी। ये सब कुछ किसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए, अच्छी उपज के लिए, हमें खेती में नई व्यवस्थाओं का निर्माण करना ही होगा, ज्यादा वैज्ञानिक पद्धतियों को, ज्यादा टेक्नॉलॉजी को खुले मन से अपनाना ही होगा। इसी सोच के साथ हमने कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धतियों को बढ़ाने, टेक्नोलॉजी के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर बल दिया है। आज देश में किसानों को 22 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जा चुके हैं ताकि उन्हें मिट्टी की सेहत की सही जानकारी मिले। हम अच्छी से अच्छी क्वालिटी के बीज किसानों को मिलें, इसके लिए वैज्ञानिक तरीके से जागृत प्रयास कर रहे हैं। बीते 7-8 साल में 1700 से अधिक वैरायटी के ऐसे बीज किसानों को उपलब्ध कराए गए हैं, जो ये बदलती जलवायु परिस्थिति है, उसमें भी अपना मकसद पूरा कर सकते हैं, अनुकूल रहते हैं हमारे यहां जो पारंपरिक मोटे अनाज – Millets होते हैं, उनके बीजों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी आज देश में अनेक Hubs बनाए जा रहे हैं। भारत के मोटे अनाज पूरी दुनिया में प्रोत्साहन पाएं, इसके लिए सरकार के प्रयासों से अगले वर्ष पूरी दुनिया में मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष भी घोषित किया गया है। दुनियाभर में हमारे मोटे अनाज की चर्चा होने वाली है। अब मौका आपके सामने है, दुनिया में कैसे पहुंचना है। आप सभी पिछले 8 साल में सिंचाई को लेकर जो कार्य हुए हैं, उससे भी भली भांति परिचित हैं। हमारे यहां खेतों को पानी से लबालब भरना, जब तक किसान को खेत में सारी फसल पानी में डूबी हुई नजर नहीं आती है, एक भी पौधे की मुंडी अगर बाहर दिखती है तो उसको लगता है पानी कम है, वो पानी डालता ही जाता है, तालाब जैसा बना देता है पूरे खेत को। और उससे पानी भी बर्बाद होता है, मिट्टी भी बर्बाद होती है, फसल भी तबाह हो जाती है। हमने इस स्थिति से किसानों को बाहर निकालने पर भी काम किया है। Per drop more crop, सूक्ष्म सिंचाई, माइक्रो इरीगेशन उस पर बहुत अधिक बल दे रहे हैं, टपक सिंचाई पर बल दे रहे हैं। स्प्रिंकलर पर बल दे रहे हैं। पहले हमारे गन्ना का किसान ये मानने को तैयार नहीं था कि कम पानी से भी गन्ने की खेती हो सकती है। अब ये सिद्ध हो चुका है स्प्रिंकलर से भी गन्ने की खेती बहुत उत्तम हो सकती है और पानी बचाया जा सकता है। उसके तो दिमाग में यही है कि जैसे पशु को पानी ज्यादा पिलाया तो दूध ज्यादा देगा, गन्ने के खेत को पानी ज्यादा दिया तो गन्ने का रस ज्यादा निकलेगा। ऐसे ही हिसाब-किताब चलते रहे हैं। पिछले 7-8 वर्षों में देश की लगभग 70 लाख हेक्टेयर ज़मीन को माइक्रोइरीगेशन के दायरे में लाया जा चुका है भविष्य की चुनौतियों के समाधान का एक अहम रास्ता नैचुरल फार्मिंग से भी मिलता है। इसके लिए भी देशभर में बहुत अधिक जागरूकता आज हम अनुभव कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती को लेकर गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के साथ-साथ यूपी, उत्तराखंड में बहुत बड़े स्तर पर किसान काम कर रहे हैं। गुजरात में तो जिला और ग्राम पंचायत स्तर पर भी इसको लेकर योजनाएं बनाई जा रही हैं। बीते वर्षों में प्राकृतिक खेती, नैचुरल फार्मिंग को जिस प्रकार नए बाज़ार मिले हैं, जिस प्रकार प्रोत्साहन मिला है, उससे उत्पादन में भी कई गुणा वृद्धि हुई है।
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