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गिरिपार क्षेत्र का प्रसिद्ध माघी त्योहार रविवार से आरंभ हो गया है। माघी त्योहार कबायली संस्कृति का प्रमाण है जो पूरे भारत देश से अलग है। रविवार को बोस्ता, सोमवार को भातियोज तथा मंगलवार को साजा के रूप में मनाया जाएगा। आने वाले बुधवार को मकर संक्रांति और आठ प्रविष्टि माघ मास को खोड़ा पर्व मनाया जाएगा। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को गिरिपार के लोग शानो-शौकत से निभाते हैं। यह माघी त्योहार जिला सिरमौर के गिरिपार, जिला शिमला के कुपवी और चौपाल उत्तराखंड के जौनसार बाबर देवघर और जौनपुर तथा राजस्थान के कुछ क्षेत्र में मनाया जाता है।
किवदंती के अनुसार भगवान शंकर द्वारा राक्षसों के विनाश के लिए मां काली को प्रकट किया गया था। राक्षसों का संहार करने के बाद जब मां काली का खप्पर न भरा तो वह नरसंहार पर उतारू हो गई। शंकर भगवान कैलाश के समीप राह में सो गए। काली विकराल और प्रचंड थी और वह नरसंहार के लिए पहाड़ों की ओर बढ़ रही थी। जैसे ही काली ने शंकर भगवान की छाती पर अपना त्रिशूल मारा तो उन्हें होश आया कि वह परमपिता त्रिलोकी को ही अपना क्रोध दिखा रही है।
काली की जीभ बाहर निकली और उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। मां काली ने भगवान शंकर से आराधना की कि उनका खप्पर कैसे भरेगा। उसी समय से काली के खप्पर भरने की यह परंपरा चली आ रही है। एक अनुमान के अनुसार गिरिपार क्षेत्र में इस वर्ष 55 से 60 हजार बकरे, खाडू व सूअर इस त्योहार में काटे जाएंगे, जिसमें करीब दस से 15 करोड़ रुपए का खर्च होगा। यह देव आस्था से जुड़ी माघी त्योहार की परंपरा को लोग बखूबी निभाते हैं। जो लोग शाकाहारी हैं वह भी मीठी धाम बनाकर घर में मां काली का पूजन कर इस त्योहार को मनाते हैं।
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