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देश को भले ही आजादी को 70 वर्ष से भी ज्यादा का वक्त हो गया हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश के राजस्व और पुलिस विभाग में 100 वर्ष पुरानी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है। भाषा के शब्दों को हिंदी में लिखा जाता है। लिखने वाले को यह ज्ञान तो जरूर है कि इस शब्द का प्रयोग कहां करना है और इसे कहां लिखा जाना है, लेकिन बहुत कम लोगों को इसके हिंदी मायने नहीं आते। राजस्व विभाग की अगर बात की जाए तो बाजीबुलर्ज, तहरीर उल अमल, शेजरा नसफ, मिसल हकीयत, शेजरा, जमाबंदी, इंतकाल, अक्स मुसाफी, खसरा गिरदावरी, तमिल आदि राजस्व विभाग का रिकार्ड की पुस्तकों व रिकार्ड का नाम है। यही नहीं अर्जी नवीस, वसीका नवीस भी दस्तावेज लिखते हुए भले ही हिंदी में लिखते हैं, लेकिन शब्द पुरानी भाषा के प्रयोग करते हैं।
बयान हल्की, तस्दीक, फर्द वदर, वसीयतनामा, तर्क हकनामा, हिब्बा, नकल का सवाल, मनकुला गैर मनकुला, मजरुआ, गैरमजरूआ, आबादी देह, मुश्तर्का, जुमला मालकान आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह सारे शब्द उर्दू के हैं, लेकिन इन्हें हिंदी में लिखकर आज भी प्रयोग किया जा रहा है। सारा राजस्व रिकार्ड इसी भाषा में लिखा है। वही बात करें पुलिस विभाग की तो यहां भी उर्दू भाषा के शब्द हिंदी में लिखे जाते हैं। पुलिस विभाग में इकरारनामा, सजायाफ्ता, ताजीरात हिंद, मुकर्रर, गारद, रपट रोजनामचा, मिसल, दफ्तरदाखिल आदि भाषा प्रयोग होती है। इनके मायने आएं या न आएं लेकिन विभाग को पता है कि इन शब्दों का प्रयोग कहां होना है।
शिलाई डिग्री कालेज के हिंदी प्रोफेसर डा. खतरी राम का कहना है कि भाषा का अनुवाद करके इन शब्दों को हिंदी में भी लिखा जा सकता है। विभाग को इसे संशोधित करना चाहिए। उधर, इस संबंध में एसडीएम शिलाई योगेश चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि रिकार्ड में उर्दू भाषा के शब्द आज भी प्रयोग किए जाते हैं। पुराना रिकार्ड भी रखना अनिवार्य है। जो देश और प्रदेश का विरासत है। पूरे प्रदेश में इसी तरह का रिकार्ड है। इसको अनुवादित करना प्रदेश का मामला है। इस बारे में वह टिप्पणी नहीं कर सकते।
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