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हिमाचल प्रदेश में गिद्धों की मूवमेंट पता करने के लिए वन्य प्राणी विभाग गिद्धों की जीपीएस टैगिंग करेगा। ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम के माध्यम से इस बात का पता लगाया जाएगा कि गिद्ध कौन से क्षेत्र में अधिक वास करते हैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया व वाइल्ड लाइफ विभाग हमीरपुर ने मिलकर जीपीएस टैङ्क्षगग का कार्य शुरू कर दिया है।
कांगड़ा में हर साल होने वाले सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि प्रदेश में गिद्ध प्रजाति बढ़ रही है। जाहिर है कि गिद्ध पर्यावरण मित्र होते हैं। कुछ वर्षों पूर्व इनकी प्रजाति उस समय संकट में आ गई, जब पशुओं को दी जाने वाली एक दर्दनाशक दवाई इनके खात्मे का कारण बनी। इस दवाई के कारण गिद्धों की संख्या गिनी चुनी रह गई थी। पशुओं को दी जाने वाली दर्दनाशक दवाई डायक्लोफेनाक के कारण गिद्धों की संख्या में तेजी से कमी हुई थी।
यहां तक कि पर्यावरण मित्र गिद्ध की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई थी। खतरे को भांपते हुए गिद्धों की लगातार हो रही मौत की वजह बने इंजेक्शन पर वैन लगा दिया गया। बाद में इनके संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाए गए। हिमाचल के कांगड़ा जिला में सबसे अधिक गिद्ध पाए जाते हैं तथा इनका कुनबा साल दर साल बढ़ रहा है। इन दिनों गिद्धों को जीपीएस लगाने का कार्य शुरू किया गया है। जीपीएस के माध्मय से इनकी मूवमेंट पर नजर रखी जाएगी। (एचडीएम)
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